भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के जन्म की दिव्य कथा
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें वह गूढ़ और अत्यंत पवित्र कथा सुनाने आया हूँ, जिसे सुनकर मन भक्ति और श्रद्धा से भर उठता है—भगवान कार्तिकेय (स्कंद) के जन्म की दिव्य कथा। यह कथा केवल एक देवता के जन्म की नहीं, बल्कि दैवी ऊर्जा, तप, त्याग और देवताओं के सामूहिक संकल्प से सृष्टि में आया वह तेज है जिसने स्वयं असुर-राज तारकासुर को पराजित करने के लिए जन्म लिया।
प्राचीन काल में तारकासुर नामक असुर अत्यंत शक्तिशाली हो गया था। उसने कठोर तप किया, और ब्रह्माजी से वरदान पाया कि उसे केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जा सकता है। तारकासुर जानता था कि शिव माता सती के देह-त्याग के बाद योग और समाधि में डूब चुके हैं, वे संसार से पूर्णत: विरक्त हो चुके हैं, इसलिए उनका विवाह होना असंभव था। इसी अहंकार में वह तीनों लोकों को त्रस्त करने लगा।
जब देवता अत्यंत दुःखी हुए, तब सभी देवताओं, ऋषियों और स्वयं ब्रह्मा ने यह निश्चय किया कि शिव और पार्वती का पुनः मिलन कराकर शिवपुत्र का जन्म कराया जाए। तप की अग्नि जलने लगी, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या आरम्भ की। वर्षों तक उन्होंने केवल पत्ते, फिर हवा, और अंत में केवल ध्यान के बल पर अपना तप बनाए रखा। उनके तप से त्रिलोक कंपित हो उठा।
पार्वती के इस तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव का हृदय पिघला, और उनका शिव-पार्वती का दिव्य विवाह हुआ। इस विवाह के बाद संपूर्ण देवताओं की आशा जाग उठी। देवताओं ने अग्नि से प्रार्थना की कि वे देव–ऊर्जा को धारण करें, क्योंकि शिव का तेज मानव देह द्वारा धारण करना संभव नहीं था। शिव के दिव्य तेज की अग्नि भी धारण न कर सकी और वह तेज दग्ध होकर हिमालय के सरोवर–समान सरवन वन में गिरा।
यही दिव्य तेज आगे चलकर छ: रूपों में विभाजित हुआ, जिसे छ: कृतिकाओं ने पाया और अपनी मृत्यु समान ममता से उन्हें पाला। यही कारण है कि स्कंद को कार्तिकेय कहा जाता है। जब माता पार्वती ने उन छह बालकों को देखा तो अपने दिव्य स्पर्श से उन्हें एकीकृत कर एक ही बालक के रूप में प्रतिष्ठित किया—छः मुखों वाला अद्भुत तेजस्वी बालक, जो भविष्य में देवसेना का सेनापति बनेगा।
कार्तिकेय के छह मुख अग्नि, जल, वायु, आकाश, पृथ्वी और सूर्य के समान तेजस्वी थे। उनका रूप इतना दिव्य था कि देवताओं ने उन्हें देखते ही प्रणाम किया। मात्र बाल्यावस्था में ही उन्होंने दिव्य अस्त्र–शस्त्र धारण किए और देवताओं की सेना के सेनापति नियुक्त हुए।
जब समय आया, कार्तिकेय तारकासुर से युद्ध करने पहुँचे। यह युद्ध केवल शारीरिक युद्ध नहीं था—यह धर्म और अधर्म, सत और असत के बीच निर्णायक संघर्ष था। तारकासुर को अपने वरदान का पूर्ण घमंड था, पर वह कार्तिकेय के दिव्य तेज, उनकी बुद्धि, युद्ध–कला और शिव–शक्ति के आगे टिक न सका। एक ही प्रहार में कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत कर दिया, और तीनों लोक पुनः शांत हो उठे।
यह कथा हमें सिखाती है कि जब ब्रह्मांड में अधर्म बढ़ता है, तब सृष्टि स्वयं ऊर्जा एकत्रित कर ईश्वर को पुकारती है। शिव और पार्वती की तपस्या, देवताओं का प्रयास, कृतिकाओं का मातृत्व और कार्तिकेय का तेज—यह सब मिलकर बताता है कि सृष्टि का प्रत्येक कार्य योजना और उद्देश्यपूर्ण होता है।
भगवान कार्तिकेय आज भी वीरता, ज्ञान, तेज और नेतृत्व के प्रतीक हैं। दक्षिण भारत में वे “मुरुगन”, “सुबरह्मण्य” और “स्कंद” के रूप में पूजे जाते हैं। जहाँ शिव समाधि हैं, वहीं कार्तिकेय ऊर्जा और गतिशीलता का रूप हैं।
स्रोत / संदर्भ
यह कथा शिव पुराण – रुद्र संहिता, स्कंद पुराण, तथा महाभारत – वनपर्व में वर्णित कार्तिकेय जन्म–प्रसंग पर आधारित है।
लेखक : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन : सनातन संवाद
संक्षेप में — मुख्य बिंदु
- कार्तिकेय का जन्म देवताओं, ऋषियों और माता-पिता (शिव–पार्वती) के संयुक्त संकल्प से हुआ।
- तारकासुर के वध के लिए विशेष दिव्य तेज का अवतरण आवश्यक था।
- छः कृतिकाएँ और माता पार्वती—इन सबका योगदान और मातृत्व इस कथा में प्रमुख है।
- कार्तिकेय वीरता, नेतृत्व और धर्मरक्षा के प्रतिक हैं; उनकी कथा धर्म और उद्देश्य का संदेश देती है।
Call to Action (CTA)
यदि आप ऐसी पुराणिक कथाओं से प्रेरित होते हैं, तो इन्हें अपने परिवार, विशेषकर बच्चों को सुनाएँ — ये कथाएँ वीरता, त्याग और धर्म के आदर्श सिखाती हैं।
Share This Post (WhatsApp)
Share This Post (Facebook)
Donation box (click here)
Or pay directly via UPI ID: ssdd@kotak
Support Us / Donate us: हम सनातन ज्ञान, धर्म–संस्कृति और आध्यात्मिकता को सरल भाषा में लोगों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि आपको हमारा कार्य उपयोगी लगता है, तो कृपया सेवा हेतु सहयोग करें। आपका प्रत्येक योगदान हमें और बेहतर कंटेंट बनाने की शक्ति देता है।
FAQ — सामान्य प्रश्न (FAQ Schema नीचे JSON-LD में जोड़ा गया है)
प्रश्न: कार्तिकेय किस कारण जन्मे थे?
उत्तर: देवताओं ने तारकासुर के अत्याचार को समाप्त करने हेतु शिव–पार्वती के संकल्प और तप द्वारा उत्पन्न दिव्य तेज से कार्तिकेय का जन्म कराया।
प्रश्न: कार्तिकेय को कितने मुख थे और उनका अर्थ क्या है?
उत्तर: पारंपरिक कथा के अनुसार उन्हें छः मुख बताए जाते हैं — जो उनके व्यापक तेज, सीमा और दिव्यता को दर्शाते हैं और जो विविध तत्वों/ऊर्जाओं के प्रतीक माने जाते हैं।
प्रश्न: कार्तिकेय का तारकासुर पर विजय का महत्व क्या है?
उत्तर: यह विजय धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक संघर्ष का प्रतीक है; अधर्म के वृद्धि पर सृष्टि अपनी रक्षा हेतु दिव्य शक्ति उत्पन्न करती है।
लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद
Copyright / Copyright disclaimer:
इस लेख का सम्पूर्ण कंटेंट लेखक तु ना रिं और सनातन संवाद के कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित है। बिना अनुमति इस लेख की नकल, पुनःप्रकाशन या डिजिटल/प्रिंट रूप में उपयोग निषिद्ध है। शैक्षिक और ज्ञानवर्धन हेतु साझा किया जा सकता है, पर स्रोत का उल्लेख आवश्यक है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें