मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे जीवन में संतुलन रखना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं आपको सनातन धर्म की उस शिक्षा के बारे में बताना चाहता हूँ
जो जीवन को न तो बहुत कठोर बनाती है,
न ही बहुत ढीला छोड़ती है—
जीवन में संतुलन।
सनातन धर्म कहता है कि जीवन का अर्थ केवल त्याग नहीं है, और न ही केवल भोग। यह दोनों के बीच का मार्ग है। इसीलिए हमारे यहाँ साधु भी हैं, और गृहस्थ भी— दोनों को समान सम्मान मिला है।
हमारे धर्म ने कभी यह नहीं कहा कि सब कुछ छोड़कर ही मोक्ष मिलेगा। इसने यह भी नहीं कहा कि मनमानी करने से ही सुख मिलेगा। सनातन ने सिखाया— मर्यादा में रहकर आनंद लो।
काम करो, पर अहंकार मत पालो। कमाओ, पर लोभ मत रखो। प्रेम करो, पर आसक्ति में मत डूबो। यही संतुलन है।
इसी संतुलन का नाम है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष— चार पुरुषार्थ। जीवन को चार दिशाएँ देने वाला मार्ग। जो मनुष्य इन चारों को संतुलित रखता है, वही वास्तव में शांत और सुखी होता है।
आज की दुनिया में लोग या तो केवल पैसा कमाने में उलझे हैं, या केवल सुख के पीछे भाग रहे हैं, या फिर निराश होकर सब छोड़ देना चाहते हैं। लेकिन सनातन धर्म कहता है— किसी एक में मत फँसो, सबको समझकर जियो।
मैं तु ना रिं यह मानता हूँ कि सनातन धर्म का यही संतुलन हमें भीतर से मजबूत बनाता है। यह हमें टूटने नहीं देता, यह हमें भटकने नहीं देता।
और इसी संतुलन की शिक्षा के कारण मैं गर्व से कहता हूँ— “हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे संतुलित जीवन जीना सिखाता है।”
📌 सनातन धर्म का संतुलन — संक्षेप में
- त्याग और भोग के बीच मध्यम मार्ग
- गृहस्थ और साधु — दोनों का सम्मान
- मर्यादा में रहकर आनंद
- चार पुरुषार्थों का समन्वय
🙏 Support Us / Donate Us
हम सनातन ज्ञान, धर्म–संस्कृति और आध्यात्मिकता को सरल भाषा में लोगों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि आपको हमारा कार्य उपयोगी लगता है, तो कृपया सेवा हेतु सहयोग करें। आपका प्रत्येक योगदान हमें और बेहतर कंटेंट बनाने की शक्ति देता है।
Donate Us
UPI ID: ssdd@kotak
📲 Share This Post
Share on WhatsApp
Share on Facebook
❓ FAQ – सनातन धर्म और जीवन संतुलन
सनातन धर्म संतुलन क्यों सिखाता है?
क्योंकि सनातन धर्म जीवन को संपूर्ण रूप में देखता है — केवल त्याग या केवल भोग नहीं।
चार पुरुषार्थ क्या हैं?
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — जीवन के चार संतुलित उद्देश्य।
क्या गृहस्थ जीवन भी आध्यात्मिक हो सकता है?
हाँ, सनातन धर्म में गृहस्थ और साधु दोनों समान रूप से पूज्य हैं।
लेखक / Writer: तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By: सनातन संवाद
Copyright Disclaimer:
इस लेख का सम्पूर्ण कंटेंट लेखक तु ना रिं और सनातन संवाद के कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित है।
बिना अनुमति इस लेख की नकल, पुनःप्रकाशन या डिजिटल/प्रिंट रूप में उपयोग निषिद्ध है।
शैक्षिक और ज्ञानवर्धन हेतु साझा किया जा सकता है, पर स्रोत का उल्लेख आवश्यक है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें