भाई दूज: यम द्वितीया और भाई-बहन के संबंध
भाई दूज, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है, कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया को आता है। प्राचीन काल से यह पर्व भाई-बहन के सम्बन्धों का प्रतीक रहा है, पर यह केवल प्रेम और स्नेह का उत्सव नहीं है; यह जीवन और मृत्यु, कर्तव्य और संरक्षण, श्रद्धा और आशीर्वाद का गहन संदेश देता है। कहते हैं कि यमराज, मृत्यु के स्वामी और न्याय के पालनहार, अपनी बहन यमुनाजी से मिलने आए। यमुनाजी ने अपने भाई का स्वागत अत्यंत स्नेह और आदर के साथ किया, उन्हें भोजन कराया, स्नान कराकर शुद्ध किया और उनके पगों को स्पर्श करके आशीर्वाद दिया। यमराज इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वचन दिया कि जो बहन इस दिन अपने भाई के लिए इसी प्रकार सम्मान और सेवा करेगी, उसके भाई का जीवन लंबा, सुरक्षित और सुखी रहेगा। यही कथा हमें यह स्मरण कराती है कि स्नेह और सम्मान केवल पारिवारिक सौहार्द के लिए नहीं, बल्कि जीवन की स्थायित्व और सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
प्राचीन गृहस्थ इस दिन सुबह उठकर स्नान करते, घर और आँगन की सफाई करते, दीपक जलाते और पूजा की व्यवस्था करते। बहनें अपने भाई के लिए भोजन तैयार करतीं, उनके सिर पर तिलक करतीं, माला और फूल अर्पित करतीं। केवल भौतिक प्रसन्नता के लिए नहीं, बल्कि यह एक चेतना अभ्यास था कि जो भाई बहन का सम्मान और कर्तव्य निभाता है, उसका जीवन धर्म, विवेक और आशीर्वाद से सुरक्षित रहता है। गोवंश और पशु-पक्षियों का सम्मान भी इस दिन विशेष रूप से किया जाता है। प्राचीन समय में बहनें अपने भाई की दीर्घायु और संरक्षण की कामना करते हुए गायों को हरी घास, बछड़ों को पोषण, पक्षियों और छोटे जीवों को अन्न देती थीं। यह केवल अनुष्ठान नहीं था, बल्कि यह जीवन के वास्तविक आधार—सर्वप्राणी और प्रकृति के संरक्षण—का स्मरण था।
कथा पुराणों में वर्णित है कि यमराज ने बहन के प्रेम और सेवा को देखकर यह वचन दिया कि जीवन में मृत्यु का भय कम होगा। यह प्रतीकात्मक शिक्षा देती है कि यदि संबंध स्नेह, आदर और कृतज्ञता से भरे हों, तो जीवन में भय, अनिश्चितता और दुःख कम होते हैं। इसी कारण भाई दूज में बहन का व्यवहार केवल परिवारिक कर्तव्य नहीं, बल्कि जीवन और समाज के कल्याण का उपाय बन जाता है। इस दिन बहन का आशीर्वाद, भोजन और पूजा केवल भाई के लिए नहीं, बल्कि उसके कर्म, जीवन और आंतरिक विकास के लिए भी है।
भाई दूज का महत्व केवल परिवार में नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति में भी प्रत्यक्ष है। प्राचीन ऋषियों ने इसे जीवन के अनुशासन और सामाजिक संरचना का प्रतीक माना। भाई दूज में बहन का प्रेम और सेवा यह दर्शाता है कि परिवार के प्रत्येक सदस्य का जीवन दूसरों के कल्याण से जुड़ा है। यदि भाई-बहन का संबंध स्नेह और आदर से दृढ़ हो, तो समाज और परिवार स्थिर, सुखी और सुरक्षित रहते हैं। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन केवल भौतिक संपत्ति या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं है; यह संबंध, कर्तव्य, सेवा और कृतज्ञता के माध्यम से ही वास्तविक अर्थ और स्थायित्व प्राप्त करता है।
आज के समय में यह पर्व उतना ही महत्वपूर्ण है। शहरी जीवन की आपाधापी में लोग अपने भाई-बहन के साथ मिलने, तिलक करने और भोजन कराने का अवसर इस दिन विशेष रूप से निकालते हैं। बच्चे इस दिन अपने भाइयों के लिए मिठाई और उपहार लाते हैं, और बड़े अपने अनुभव, आशीर्वाद और मार्गदर्शन के साथ उन्हें जीवन के उच्च मूल्य सिखाते हैं। यह पर्व केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि चेतना का स्मरण है कि स्नेह, सेवा और आशीर्वाद ही जीवन को पूर्णता देते हैं।
भाई दूज की परंपरा केवल एक दिन तक सीमित नहीं है; यह पूरे जीवन को जोड़ती है। यह हमें याद दिलाती है कि जीवन में प्रेम और सेवा के बंधन, कृतज्ञता और संरक्षण के मूल्य, मृत्यु और अनिश्चितता के बावजूद स्थायित्व प्रदान करते हैं। यही दिव्यता और जीवन का संदेश है, जो यम द्वितीया या भाई दूज के रूप में प्राचीन काल से हमारे घरों, आंगनों और हृदयों में जीवित है।
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Author/ writer: तुनारिं
Published by: सनातन संवाद © 2025
Labels: Diwali, Festivals, Traditional, Indian Rituals
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