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ब्रह्माजी और गायत्री माता का विवाह कैसे हुआ? पूरी कथा विस्तार से | Brahma Gayatri Mata Marriage Complete Story

ब्रह्माजी और गायत्री माता का विवाह कैसे हुआ? पूरी कथा विस्तार से | Brahma Gayatri Mata Marriage Complete Story

ब्रह्माजी और गायत्री माता का विवाह कैसे हुआ? पूरी कथा विस्तार से

ब्रह्माजी और गायत्री माता का विवाह, यज्ञ कथा, Sanatan Sanvad

ब्रह्मा जी को सृष्टिकर्ता माना जाता है। जब उन्हें यज्ञ करना पड़ा और उस यज्ञ में “पत्नी का साथ” अनिवार्य था, तब हुई परिस्थितियों के कारण गायत्री माता का प्राकट्य और विवाह हुआ। यह घटना ब्रह्मवैवर्त पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है।


यज्ञ के लिए पत्नी का उपस्थित होना अनिवार्य था

एक समय ब्रह्मा जी ने देवताओं, ऋषियों और प्रजापतियों की मंगल कामना के लिए एक बड़ा यज्ञ करने का निर्णय लिया। पुराणों में कहा गया है कि किसी भी वैदिक यज्ञ में “पत्नी का साथ” अत्यंत आवश्यक होता है। यह इसलिए क्योंकि पुरुष—“पुरुष” और “स्त्री”—दोनों मिलकर ही पूर्ण कर्म का अधिकार बनते हैं।

ब्रह्मा जी की पत्नी थीं सरस्वती माता। यज्ञ आरंभ होने वाला था, लेकिन कई बार अनुरोध करने के बाद भी माता सरस्वती समय पर यज्ञ स्थल पर नहीं पहुँचीं।

यज्ञ की शुभ घड़ी (मुहूर्त) समाप्त होने वाली थी। देवता, ऋषि-मुनि और ब्रह्मा जी स्वयं चिंतित हो गए।


ऋषियों ने सलाह दी कि यज्ञ रुकेगा तो दोष लगेगा

यज्ञ का मुहूर्त छूटना बहुत अशुभ माना जाता है। ऋषियों ने ब्रह्मा जी से कहा—

“यदि आप यज्ञ नहीं करेंगे तो इसका दोष पूरी सृष्टि पर पड़ेगा। यज्ञ तभी शुरू हो सकता है जब आपके साथ कोई ‘पत्नी तुल्य शक्ति’ बैठे। यदि रानी सरस्वती नहीं आ रहीं, तो आपको दूसरी शक्ति का सहारा लेना होगा।”

ब्रह्मा जी दुविधा में थे, लेकिन यज्ञ रुक नहीं सकता था।


गायत्री माता का प्राकट्य

ब्रह्मा जी के मन में इच्छा उठी कि — “काश कोई देवी यहाँ प्रकट हो जाए और इस यज्ञ में मेरे साथ आहूति दे सके।”

इसी भावना से एक तेजस्वी व अत्यंत दिव्य शक्ति का उदय हुआ — यही शक्ति गायत्री माता थीं।

गायत्री माता को “सवित्री”, “वेदमाता”, “वसु की पुत्री” और “ब्रह्म तेज की अभिव्यक्ति” भी कहा गया है।

कहता है कि गायत्री माता एक दिव्य अप्सरा के रूप में, या एक गोपिका रूप में, या ब्रह्म तेज से उत्पन्न देवी के रूप में प्रकट हुईं।

वे पूर्णतः सतीत्व, शुद्धता और ज्ञान की प्रतीक थीं।


ब्रह्मा जी और गायत्री माता का विवाह

ऋषियों और देवताओं ने कहा कि गायत्री माता की उपस्थिति संपूर्ण रूप से “पत्नी तुल्य” है। इसलिए यज्ञ की सिद्धि के लिए ब्रह्मा जी का उनका विवाह करना आवश्यक है।

ब्रह्मा जी ने सहमति दी, और यज्ञ स्थल पर ऋषियों ने विधि-विधान से ब्रह्मा जी और गायत्री माता का विवाह कराया।

यही कारण है कि उन्हें “ब्रह्मा पत्नी गायत्री” कहा जाता है।

इस विवाह के बाद यज्ञ सिद्ध हुआ और पूरे ब्रह्मांड में कल्याण का संदेश फैला।


सरस्वती माता का क्रोध

कुछ देर बाद सरस्वती माता यज्ञ स्थल पर पहुँचीं। उन्होंने देखा कि यज्ञ पहले ही शुरू हो चुका है और ब्रह्मा जी के साथ दूसरी देवी बैठी हैं।

इससे सरस्वती माता क्रोधित हो गईं। पुराणों में वर्णित है कि अपने क्रोध में उन्होंने—

  • देवताओं
  • ऋषियों
  • यहाँ तक कि ब्रह्मा जी तक

को अनेक श्राप दिए। उनके श्रापों के कारण ही कई घटनाएँ घटीं, जैसे— ब्रह्मा जी का पृथ्वी पर पूजा न होना, देवताओं के कुछ कष्ट, और संसार में कलह का आरंभ।

गायत्री माता ने अपने सौम्य स्वभाव से सरस्वती माता को शांत करने का प्रयास किया, और धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई।

यह घटना दर्शाती है कि देव शक्तियों के भी अलग-अलग स्वरूप और भाव होते हैं।


गायत्री और सरस्वती — दोनों अलग शक्तियाँ

यह जानना महत्वपूर्ण है कि—

सरस्वती माता ज्ञान की शक्ति हैं।
गायत्री माता वेदों की शक्ति और ब्रह्म तेज की अभिव्यक्ति हैं।

दोनों दिव्य हैं, दोनों पूजनीय हैं, और दोनों का स्वरूप व कार्य अलग-अलग है।


विवाह की कथा का आध्यात्मिक अर्थ

यह पूरी कथा केवल घटना नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश भी देती है—

  • गायत्री माता “शक्ति” का वह रूप हैं जो सृष्टि की रक्षा के लिए स्वतः प्रकट होती है।
  • ब्रह्मा जी की सृष्टि-रचना तभी सक्षम होती है जब उनके साथ स्त्री शक्ति हो।
  • यज्ञ में शक्ति का होना “पूरकता” को दर्शाता है।
  • सरस्वती और गायत्री दोनों ज्ञान, तेज और शक्ति के अलग-अलग रूप हैं — एक सृजन में सहायक है, दूसरी यज्ञ और आध्यात्मिक ऊर्जा में।

निष्कर्ष

ब्रह्मा जी और गायत्री माता का विवाह एक आवश्यक कर्म के कारण हुआ था, जो यज्ञ की सफलता और ब्रह्मांड की रक्षा के लिए आवश्यक था। गायत्री माता ब्रह्म तेज से उत्पन्न शक्ति हैं और इस कारण उन्हें “ब्रह्मा पत्नी” भी कहा जाता है। सरस्वती माता का क्रोध उनके भावों का स्वाभाविक रूप था, लेकिन अंत में दोनों शक्तियों ने मिलकर ब्रह्मांड की उन्नति सुनिश्चित की।

यह कथा केवल ऐतिहासिक या पौराणिक विवरण नहीं, बल्कि हमारे जीवन के लिए भी मार्गदर्शन है। यदि आपको यह लेख उपयोगी लगे, तो इसे अपने परिवार, मित्रों और भक्ति-रस से जुड़े लोगों तक ज़रूर पहुँचाएँ।
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Lekhak (Author): तु ना रिं

Publish by: सनातन संवाद

Labels: Sanatan Dharma, Hindu Dharma, Brahma Gayatri story, Vedic Katha, Pauranik Story

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