पंचमुखी हनुमान का प्राकट्य कैसे हुआ? – रहस्य, शक्ति और अद्भुत सनातन कथा
सनातन ग्रंथों में हनुमान जी को असीम शक्ति, परम निष्ठा और अद्वितीय भक्ति का साक्षात स्वरूप माना जाता है। उनका पांचमुखी (पंचमुख) रूप सबसे रहस्यमयी और प्रचंड प्रतीकों में से एक है। यह रूप केवल शक्ति का प्रदर्शन नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की पाँच दिशाओं, पाँच तत्त्वों और पाँच सुरक्षा-व्यूहों का प्रतिनिधित्व करता है। पंचमुखी हनुमान का जन्म किसी साधारण परिस्थिति में नहीं हुआ, बल्कि उस समय प्रकट हुआ जब धर्म संकट में था, भगवान राम युद्ध में थे और देव-दानवों के बीच संतुलन डगमगा रहा था। यह रूप उतना ही शक्तिशाली है जितना दुर्लभ, क्योंकि हनुमान जी का प्रत्येक मुख एक विशेष दिशा, शक्ति और तांत्रिक उद्देश्य का प्रतीक है।
कथा के अनुसार, जब श्रीराम और रावण के बीच भीषण युद्ध चल रहा था, तब अहिरावण और महिरावण—जो पाताल लोक के अत्यंत शक्तिशाली तांत्रिक और मायावी राक्षस थे—ने छल से श्रीराम और लक्ष्मण को अगवा कर लिया। ये दोनों राक्षस रावण के ही रिश्तेदार थे और तांत्रिक विद्या में इतने निपुण कि देवताओं तक को धोखा दे सकते थे। उन्होंने प्रभु राम और लक्ष्मण को पाताल लोक में ले जाकर एक ऐसे यज्ञ की तैयारी कर ली जिसमें उनका बलिदान देना आवश्यक था। यह बलिदान पूर्ण हो जाता, तो पृथ्वी पर अधर्म की सत्ता स्थायी हो जाती। पूरी वानर सेना स्तब्ध थी और किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। तभी वीर हनुमान ने संकल्प लिया कि चाहे पाताल लोक भी क्यों न जाना पड़े, वे अपने प्रभु को वापस लेकर आएँगे।
हनुमान पाताल लोक में पहुँचे तो देखा कि चारों ओर भयानक तांत्रिक ऊर्जा घूम रही है, मायावी भ्रम फैला हुआ है और अहिरावण–महिरावण ने शक्तिशाली रक्षक स्थापित कर रखे थे। उनकी शक्ति का स्रोत पाँच दिशाओं में स्थित पाँच दीपक थे, जिन्हें एक साथ बुझाए बिना उनका वध असंभव था। यही कारण था कि हनुमान के लिए एक ही दिशा से हमला करना पर्याप्त नहीं था। यह परिस्थिति दिव्य परिवर्तन की मांग कर रही थी। तभी हनुमान जी ने अपने भीतर स्थित ब्रह्म शक्ति को जागृत किया और अपने आपको पाँच मुखों वाले विराट, तेजस्वी और अद्भुत रूप में प्रकट किया। यही दिव्य स्वरूप पंचमुखी हनुमान कहलाया — जो किसी भी साधारण रूप से कई गुना अधिक शक्तिशाली, तेजयुक्त और तांत्रिक बाधाओं को नष्ट करने वाला था।
पंचमुख में सबसे मुख्य मुख था—
हनुमान मुख, जो पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और संहार, साहस तथा रक्षा का मूल स्रोत है।
दूसरा मुख नरसिंह मुख था, जो दक्षिण दिशा का अधिपति माना जाता है और भय, दुष्ट शक्तियों तथा दैवीय रक्षाओं का विनाशक माना जाता है।
तीसरा मुख गरुड़ मुख था, जो पश्चिम दिशा का स्वामी है और विष, तंत्र, जाल–बंधन, नाग–दोष और मायावी शक्तियों को नष्ट करता है।
चौथा मुख वराह मुख था, जो उत्तर दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और पाताल शक्तियों, ग्रह बाधाओं तथा दैत्य-ऊर्जाओं पर नियंत्रण रखता है।
पाँचवाँ और सबसे रहस्यमयी हयग्रीव मुख था, जो ऊपर की दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और ज्ञान, मंत्र-शक्ति तथा दिव्य चेतना का अमृत प्रदान करता है।
इस प्रकार पंचमुखी स्वरूप वास्तव में पाँच दिव्य ऊर्जा-केंद्रों का एक ही शरीर में प्रकट होना है, जो किसी भी तांत्रिक बंधन, ग्रहदोष, मायावी आक्रमण और दैत्य-शक्ति को एक क्षण में नष्ट कर देता है।
पंचमुखी रूप धारण करने के बाद हनुमान जी ने पाँचों दिशाओं में रखे दीपकों को एक ही समय में बुझाया। दीपक बुझते ही अहिरावण–महिरावण की सुरक्षा-शक्ति नष्ट हो गई और उनकी मायावी ताकतें तुरंत समाप्त होने लगीं। इसके बाद पंचमुखी हनुमान ने दोनों राक्षसों का संहार किया और प्रभु राम–लक्ष्मण को सुरक्षित युद्धभूमि में वापस ले आए। यह विजय केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि तांत्रिक अधर्म, मायावी ऊर्जा और भय की सत्ता पर सनातन शक्ति की जीत थी। इसी वजह से पंचमुखी हनुमान को तांत्रिक साध्नाओं, सुरक्षा मंत्रों, ग्रह शांति और भय–मुक्ति में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। यही स्वरूप भक्तों की हर दिशा से रक्षा करता है और हर बाधा को नष्ट करता है।
यह कहानी केवल एक पुराणिक घटना नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक संदेश भी देती है। यह बताती है कि मनुष्य का जीवन भी पाँच दिशाओं की तरह होता है—जहाँ भय, भ्रम, विषाद, बाधाएँ और अज्ञान छिपे होते हैं। पंचमुखी हनुमान का अर्थ है कि मनुष्य को भीतर की पाँचों शक्तियों को जागृत करना होगा—साहस, रक्षा, ज्ञान, संतुलन और उत्थान। जब यह पाँचों शक्तियाँ एक साथ सक्रिय होती हैं, तभी जीवन में विजय, शांति और स्थिरता आती है। यही कारण है कि पंचमुखी हनुमान की पूजा को “दिशाओं की सुरक्षा”, “बाधाओं का नाश”, “नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा” और “जीवन-यात्रा की सुरक्षा” का पवित्र प्रतीक माना जाता है।
आज भी साधक रात के समय, ग्रहदोष या भय के समय पंचमुखी हनुमान की उपासना करते हैं। यह रूप न केवल तंत्र–बाधा नष्ट करता है, बल्कि मानसिक भय, नकारात्मकता, भ्रम और जीवन में बने अंधकार को भी प्रकाश देता है। पंचमुखी हनुमान की कथा सिखाती है कि भक्त और भक्ति में जब निष्ठा अटल हो जाती है, तब शक्ति स्वयं प्रकट होती है। यह रूप यह भी दर्शाता है कि जिस विश्वास से साधक प्रयास करता है, उसी विश्वास से दिव्य कृपा भी प्रकट होती है।
लेखक (Writer / लेखक):
तु ना रिं 🔱
Publish By / प्रकाशन:
सनातन संवाद
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Lekhak (Author): तु ना रिं
Publish by: सनातन संवाद
Labels: Panchmukhi Hanuman, Hanuman Bhakti, Sanatan Dharma, Hindu Deities, Tantra and Protection, Ahiravana Mahiravana, Panchmukhi Hanuman Birth Story
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