25 दिसंबर 2025 का दिन सनातन धर्म के संदर्भ में केवल एक तारीख नहीं, बल्कि विचार, चेतना और आत्ममंथन का प्रतीक बनकर सामने आया है। आज के भारत और विश्व में सनातन धर्म को लेकर जो चर्चाएँ, घटनाएँ और संदेश उभरकर आए हैं, वे यह स्पष्ट करते हैं कि सनातन अब केवल आस्था का विषय नहीं रहा, बल्कि संस्कृति, पहचान और जीवन-दर्शन के स्तर पर गंभीर विमर्श का केंद्र बन चुका है।
आज तुलसी पूजन दिवस के साथ दिन की शुरुआत हुई। एक ओर घर-घर तुलसी के पौधे के सामने दीपक जले, मंत्र गूंजे और शांति का अनुभव हुआ, वहीं दूसरी ओर समाज के बड़े प्रश्नों पर भी चिंतन चलता रहा। तुलसी पूजन हमें याद दिलाता है कि सनातन धर्म की जड़ें प्रकृति, संयम और संतुलन में हैं। यह धर्म पूजा के साथ-साथ जीवन को शुद्ध रखने की शिक्षा देता है — बाहर भी और भीतर भी।
इसी दिन मंदिरों की मर्यादा और सुरक्षा को लेकर चिंता भी सामने आई। बिहार में बढ़ती मंदिर चोरी की घटनाओं के बाद बिहार स्टेट रिलिजियस ट्रस्ट काउंसिल द्वारा जनवरी 2026 में बैठक बुलाने की घोषणा हुई। यह खबर केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतावनी है। मंदिर सनातन समाज की आत्मा हैं। वे केवल पूजा-स्थल नहीं, बल्कि स्मृति, परंपरा और संस्कार के केंद्र हैं। जब मंदिर असुरक्षित होते हैं, तो केवल मूर्तियाँ नहीं, बल्कि इतिहास और आस्था भी खतरे में पड़ती है।
आज की चर्चा में प्रयागराज को पूर्ण तीर्थ नगरी घोषित करने की माँग भी विशेष रूप से उभरी। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर बसा यह नगर सनातन चेतना का हृदय रहा है। संत-समाज का यह कहना कि प्रयागराज को केवल प्रशासनिक शहर नहीं, बल्कि संरक्षित तीर्थ क्षेत्र माना जाए, अपने आप में गहरी बात है। यह माँग विकास के विरोध में नहीं, बल्कि मर्यादित विकास के पक्ष में है — जहाँ आधुनिक व्यवस्था हो, लेकिन तीर्थ की आत्मा सुरक्षित रहे।
इसी संदर्भ में हिंदू परंपराओं और आधुनिक प्रशासन के बीच संतुलन का प्रश्न भी आज ट्रेंड करता रहा। मंदिर उत्सवों, लोक परंपराओं और धार्मिक आयोजनों पर लगाए जाने वाले नियमों को लेकर युवाओं में विशेष चर्चा देखी गई। युवा पीढ़ी पूछ रही है — क्या व्यवस्था परंपरा को समझ रही है, या केवल नियंत्रित कर रही है? यह प्रश्न विद्रोह का नहीं, बल्कि संवाद का है। सनातन संस्कृति कभी अराजक नहीं रही, लेकिन वह आदेश से नहीं, समझ से चलती है।
आज नागपुर में चल रही नौ दिवसीय रामकथा ने इस पूरे वातावरण में शांति और विवेक का स्वर जोड़ा। स्वामी रामभद्राचार्य महाराज द्वारा प्रस्तुत रामचरितमानस की व्याख्या यह याद दिलाती है कि धर्म का वास्तविक स्वरूप कथा, संस्कार और आचरण में प्रकट होता है — न कि केवल बहस में। हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति यह दर्शाती है कि समाज आज भी धर्म को सुनना और समझना चाहता है, शोर में नहीं, साधना में।
कोलकाता के न्यू टाउन में “दुर्गा आंगन” मंदिर परिसर के शिलान्यास की खबर भी आज आशा का संकेत बनी। यह परियोजना बताती है कि सनातन परंपरा ठहरी हुई नहीं है। वह आधुनिक शहरों के बीच भी अपनी जड़ें जमाने की क्षमता रखती है। मंदिर को सांस्कृतिक केंद्र और तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करने की योजना यह दर्शाती है कि देवालय समाज के केंद्र बन सकते हैं — जहाँ आस्था, कला और संस्कृति एक साथ जीवित रहें।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आज एक गंभीर संदेश सामने आया। भारत द्वारा थाईलैंड–कंबोडिया सीमा पर स्थित भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्ति के विध्वंस की निंदा यह स्पष्ट करती है कि सनातन परंपरा केवल भारत तक सीमित नहीं है। दक्षिण-पूर्व एशिया में फैली भारतीय-सांस्कृतिक विरासत पूरे विश्व की धरोहर है। किसी प्राचीन प्रतिमा का विध्वंस केवल पत्थर तोड़ना नहीं, बल्कि सभ्यता की स्मृति पर चोट है।
इन सभी घटनाओं और चर्चाओं के बीच एक मूल प्रश्न उभरकर आता है — सनातन धर्म को किस दृष्टि से देखा जाए? दिसंबर 2025 में यह बहस भी तेज़ रही कि सनातन को राजनीति के चश्मे से नहीं, जीवन-पद्धति के रूप में समझा जाए। कई विचारकों की यह आवाज़ आज और स्पष्ट हुई कि धर्म विवाद नहीं, विवेक का विषय है। सनातन न तो सत्ता चाहता है, न समर्थन — वह केवल चेतना जगाता है।
25 दिसंबर 2025 का यह पूरा परिदृश्य हमें एक बात सिखाता है। सनातन धर्म जीवित है — मंदिरों में, कथाओं में, तुलसी के पौधे में, तीर्थों की रक्षा की माँग में, और विश्व-स्तर पर अपनी स्वीकृति में। लेकिन इसके साथ ही यह दिन हमें जिम्मेदारी भी सौंपता है — कि हम इसे शोर से नहीं, समझ से जिएँ। परंपरा को बोझ नहीं, विरासत मानें। धर्म को हथियार नहीं, मार्गदर्शक बनाएं।
यही 25 दिसंबर 2025 का सनातन संदेश है —
जहाँ आस्था में विवेक हो,
परंपरा में संवेदना हो,
और धर्म जीवन में उतरे,
वहीं सनातन सदा जीवित रहता है। 🕉️🙏
लेखक / Writer : तुकाराम📿
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद
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