मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे अपने भीतर झाँकना सिखाता है
मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे अपने भीतर झाँकना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपको सनातन धर्म की उस गहरी और सच्ची शिक्षा के बारे में बताने आया हूँ जो बाहरी दुनिया से ज़्यादा अंदर की यात्रा को महत्व देती है।
दुनिया हमें सिखाती है कि खुशी बाहर मिलेगी— धन में, नाम में, लोगों की तारीफ़ में। लेकिन सनातन धर्म बहुत शांत स्वर में कहता है— जिसे तुम ढूँढ रहे हो, वह तुम्हारे भीतर ही है।
हमारे ऋषियों ने जंगलों में जाकर किसी से लड़ाई नहीं की, किसी को बदलने नहीं निकले, उन्होंने सबसे पहले अपने मन को समझा, अपने विचारों को जाना, अपने अहंकार को देखा। यही कारण है कि उनका ज्ञान आज भी अमर है।
सनातन धर्म ध्यान, योग और आत्मचिंतन पर जोर देता है। यह हमें सिखाता है कि रोज़ थोड़ा सा समय अपने आप के साथ बिताओ। अपने मन से पूछो— मैं क्या सोच रहा हूँ? मैं क्यों दुखी हूँ? मैं क्या बदल सकता हूँ?
जब इंसान खुद को समझ लेता है, तो उसे किसी से लड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती। क्योंकि भीतर शांति हो तो बाहर का शोर असर नहीं करता।
मैं तु ना रिं आपसे यही कहना चाहता हूँ— सनातन धर्म भागने का रास्ता नहीं, जागने का रास्ता है। यह हमें बताता है कि सच्चा परिवर्तन बाहर से नहीं, अंदर से शुरू होता है।
और यही कारण है कि मैं गर्व से कहता हूँ— “हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे खुद से मिलने की राह दिखाता है।”
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❓ FAQs
सनातन धर्म आत्मचिंतन पर क्यों ज़ोर देता है?
क्योंकि सच्ची शांति और परिवर्तन व्यक्ति के भीतर से शुरू होता है।
क्या सनातन धर्म बाहरी संघर्ष सिखाता है?
नहीं, यह भीतर की जागरूकता और संतुलन सिखाता है।
हिन्दू होने का गर्व किस बात में है?
अपने भीतर झाँकने, स्वयं को समझने और बेहतर मनुष्य बनने की शिक्षा में।
लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद
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