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धर्म बचाना है? पहले उसे अपने जीवन में उतारो — कड़वी सच्चाई | तु ना रिं

धर्म बचाना है? पहले उसे अपने जीवन में उतारो — कड़वी सच्चाई | तु ना रिं

धर्म बचाना है? पहले उसे अपने जीवन में उतारो

धर्म को अपने जीवन में उतारो — Sanatan Sanvad

आज का हिंदू अपने धर्म का बचाव तब करता है
जब कोई उसे अपमानित कर दे।
लेकिन धर्म का पालन तब भी नहीं करता
जब कोई उसे रोके भी नहीं।

इसका मतलब साफ़ है—
हम धर्म को भावना से जोड़ते हैं,
लेकिन अनुशासन से नहीं।

हम वेद-पुराण का गौरव तो बताते हैं,
पर उन्हें पढ़ते नहीं।
हम भगवान के अवतारों की बातें करते हैं,
पर उनके आदर्श जीवन में उतारते नहीं।
हम मंदिर बनवाने में दान देते हैं,
पर अपने घर के अंदर
एक मिनट का समय भी भगवान के लिए नहीं निकालते।

कड़वी सच्चाई यह है—
हम धर्म की रक्षा की बातें तो करते हैं,
पर धर्म को जीने की तैयारी नहीं रखते।

धर्म का सम्मान बाहरी शोर से नहीं,
भीतरी परिवर्तन से होता है।

जब तक हम अपने आचरण में धर्म नहीं लाएँगे,
तब तक हमारा हर नारा सिर्फ़ हवा में घुल जाएगा।

जय सनातन 🔱
धर्म बचाना चाहते हो?
पहले उसे अपने जीवन में उतारो।


मुख्य संदेश

  • धर्म का पालन भावना से नहीं — अनुशासन और आचरण से होता है।
  • बाहरी नारे पर्याप्त नहीं; भीतरी परिवर्तन आवश्यक है।
  • धर्म की रक्षा पहले अपने जीवन से शुरू होती है।

Call to Action (CTA)

यदि आप वास्तव में धर्म की रक्षा करना चाहते हैं — रोज़ाना साधना, स्वाध्याय और छोटे-छोटे नैतिक कर्मों को अपनाएँ। बच्चों को उदाहरण दिखाएँ; केवल नारे लगाने से कुछ नहीं होगा।


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FAQ — सामान्य प्रश्न

प्रश्न: क्या धर्म केवल भावनाओं से बचता है?
उत्तर: नहीं — धर्म अनुशासन, निरंतरता और आचरण से बचता है।

प्रश्न: धर्म को घर में कैसे उतारा जाए?
उत्तर: रोज़ साधना, स्वाध्याय, सत्कर्म, और बच्चों को उदाहरण दिखाकर।

प्रश्न: क्या नारे लगाने से धर्म सुरक्षित रहेगा?
उत्तर: नहीं — केवल भीतरी परिवर्तन और आचरण से ही धर्म जीवित रहता है।


लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद

Copyright disclaimer:
इस लेख का सम्पूर्ण कंटेंट लेखक तु ना रिं और सनातन संवाद के कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित है। बिना अनुमति इस लेख की नकल, पुनःप्रकाशन या डिजिटल/प्रिंट रूप में उपयोग निषिद्ध है। शैक्षिक और ज्ञानवर्धन हेतु साझा किया जा सकता है, पर स्रोत का उल्लेख आवश्यक है।

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