हिंदू संस्कार की सच्चाई
आज का हिंदू अपने बच्चों को दुनिया की हर चीज़ सिखाता है—
अंग्रेज़ी, कंप्यूटर, डांस, स्पोर्ट्स…
पर संस्कार सिखाने में असहज महसूस करता है।
उसे डर है कि बच्चा “आधुनिक” नहीं दिखेगा।
उसे शर्म है कि लोग उसे “धार्मिक” न समझ लें।
उसे लगता है कि संस्कार पुराने ज़माने की बातें हैं।
और जो बच्चे संस्कार नहीं सीखते,
वे अपने ही धर्म को “मिथक” समझने लगते हैं,
अपनी जड़ों को “बोझ” समझने लगते हैं।
कड़वी सच्चाई यह है—
हमारी आने वाली पीढ़ी सनातन से दूर इसलिए होगी
क्योंकि हमने उन्हें उससे जोड़ा ही नहीं।
बच्चों को राम-कृष्ण की कहानियाँ नहीं सुनाईं,
तो वे सुपरहीरो की कहानियाँ सीखेंगे।
उन्हें गीता के अध्याय नहीं पढ़ाए,
तो वे इंटरनेट की अफवाहों को ज्ञान मान लेंगे।
भगवान घर में हों या नहीं,
संस्कार जरूर होने चाहिए।
जय सनातन 🔱
संस्कार दें… यही सबसे बड़ी विरासत है।
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संक्षेप में — क्या करें (Call to Action)
- बच्चों को रोज़ाना राम-कृष्ण, रामायण या भगवद गीता की कथा सुनाएँ।
- घरेलू संस्कारों को रोज़मर्रा की आदत बनाइए — बचपन में यही स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।
- डिजिटल दुनिया के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा को भी प्राथमिकता दें।
FAQ — सामान्य प्रश्न
प्रश्न: बच्चों को संस्कार कब से सिखाएँ?
उत्तर: जितनी जल्दी संभव हो — बचपन की आदतें जीवनपर्यन्त असर करती हैं।
प्रश्न: क्या आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कार संभव हैं?
उत्तर: बिल्कुल — आधुनिक कौशल और संस्कार दोनों साथ-साथ दिए जा सकते हैं।
प्रश्न: माता-पिता किस तरह उदाहरण बनें?
उत्तर: रोज़ के छोटे-छोटे कर्म (सत्य, सहानुभूति, समय पालन) दिखाकर — शब्दों से नहीं, व्यवहार से।
लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद
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इस लेख का सम्पूर्ण कंटेंट लेखक तु ना रिं और सनातन संवाद के कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित है। बिना अनुमति इस लेख की नकल, पुनःप्रकाशन या डिजिटल/प्रिंट रूप में उपयोग निषिद्ध है। शैक्षिक और ज्ञानवर्धन हेतु साझा किया जा सकता है, पर स्रोत का उल्लेख आवश्यक है।
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