कर्म ही जीवन का धन — सनातन धर्म की सच्चाई
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं उस सत्य पर लिखने बैठा हूँ जिसने हर युग, हर ऋषि, हर महापुरुष और हर शास्त्र में अपना स्थान पाया है — कर्म ही जीवन का वास्तविक धन है।
मनुष्य जन्म से धनी नहीं होता। वह धन की पहाड़ियाँ इकट्ठी कर ले, सोने-चाँदी-संपत्ति का साम्राज्य बना ले, नाम-प्रतिष्ठा पा ले — फिर भी वह धनी तब तक नहीं होता जब तक उसका कर्म पवित्र न हो। संसार के सभी धनों में सबसे स्थायी, सबसे उज्ज्वल और सबसे दिव्य धन कर्म का है, क्योंकि यही एकमात्र धन है जो मनुष्य के साथ जीवन भर चलता है, मृत्यु के बाद भी उसके साथ रहता है, और अगले जन्म तक उसका मार्ग निर्धारित करता है।
शास्त्र कहते हैं — “कर्मणा जायते जन्तुः, कर्मणा एव विलीयते” — मनुष्य जन्म भी कर्मों के अनुसार लेता है, जीवन भी कर्मों पर टिका है और भविष्य भी कर्मों से ही निर्मित होता है। संसार के हर फल में कर्म का बीज होता है। जो कर्म अच्छे, पवित्र, सत्य और कल्याणकारी होते हैं, वे जीवन रूपी वृक्ष पर सुगंधित फल बनकर लौटते हैं। और जो कर्म तामसी, स्वार्थपूर्ण, अधार्मिक होते हैं, वे जीवन में काँटों की तरह चुभकर मनुष्य को उसकी भूलों का अहसास दिलाते हैं।
मनुष्य जीवन भर इस भ्रम में जीता रहता है कि धन उसे सुरक्षित रखेगा, पद उसे सम्मान देगा, रिश्ते उसे सहारा देंगे, और समाज उसे स्थिरता देगा। पर समय आने पर इन सभी का जाल तिनकों की तरह उड़ जाता है, और अंत में जो बचता है, वही मनुष्य का कर्म होता है। धन छूट जाता है, शरीर छूट जाता है, घर छोड़ना पड़ता है, प्रियजन अलग हो जाते हैं — पर मनुष्य अपने कर्मों से कभी अलग नहीं हो सकता। वे उसके भीतर छाप की तरह अंकित रहते हैं और वही उसके अगले कदमों का भविष्य लिखते हैं।
कर्म का अर्थ केवल काम करना नहीं है। कर्म वह है जो मनुष्य की नीयत, उसके विचार, उसके भाव, और उसके आचरण को एक दिशा देता है। कर्म वही है जिसे मनुष्य पूर्ण जागरूकता, निष्ठा और ईमानदारी से करता है। कर्म ही मनुष्य के चरित्र का वास्तविक परिचय है।
कहते हैं कि मनुष्य का जन्म सौभाग्य से होता है, पर उसका जीवन उसके कर्म निर्धारित करते हैं। जिस मनुष्य के भीतर कर्म की पवित्रता है, उसे संसार की कोई शक्ति गिरा नहीं सकती। और जिसका कर्म दूषित है, उसे संसार का कोई बल बचा नहीं सकता। राजा हो या रंक, ज्ञानी हो या मूर्ख — सभी के भाग्य का निर्माता उनके कर्म ही होते हैं।
राम ने कर्म किए, इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। कृष्ण ने कर्म किए, इसलिए वे योगेश्वर कहलाए। हनुमान ने कर्म किए, इसलिए वे संकटमोचन कहलाए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही कहकर संसार को मार्ग दिखाया — “कर्मण्येवाधिकारस्ते” — तेरा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं।
कर्म ही वह धन है जो जितना बाँटते हैं, उतना बढ़ता है। सेवा का कर्म मन को हल्का करता है। दया का कर्म जीवन को मधुर बनाता है। सत्य का कर्म आत्मा को तेजस्वी बनाता है। परोपकार का कर्म व्यक्ति को देवत्व की ओर ले जाता है। और यही कर्म जीवन के वास्तविक खजाने हैं।
सबसे बड़ा भ्रम यह है कि हम सोचते हैं —
“हमारे पास कितना धन है?”
पर जीवन असली प्रश्न पूछता है —
“हमने कितना सच्चा कर्म किया?”
धन से घर बनते हैं, पर कर्म से घर बसते हैं।
धन से शरीर का पोषण होता है, पर कर्म से आत्मा का।
धन से लोग हमारे पास आते हैं, पर कर्म से लोग हमारे पास रहना चाहते हैं।
मनुष्य जब संसार से विदा होता है, तो कोई यह नहीं पूछता कि उसने कितना बैंक बैलेंस छोड़ा, कितने मकान बनवाए, कितनी संपत्ति इकट्ठी की। लोग केवल एक ही बात कहते हैं —
“उन्होंने जीवन में कैसे कर्म किए?”
कर्म मनुष्य की अंतिम पहचान है।
जीवन में ऐसा कोई क्षण नहीं होता जब कर्म बंद हो जाए। सोते समय भी मन कर्म करता है — विचारों के द्वारा। जगकर भी कर्म होता है — व्यवहार के द्वारा। मौन रहने पर भी कर्म होता है — भाव के द्वारा। इसलिए कर्म के प्रति सजग होना ही आध्यात्मिकता का वास्तविक प्रारंभ है।
जो मनुष्य अपने कर्मों को शुद्ध कर लेता है, उसके भीतर अद्भुत शक्ति उत्पन्न होती है। उसका मन शांत, उसकी बुद्धि प्रखर, और उसकी आत्मा प्रसन्न हो जाती है। ईश्वर भी उसी के निकट आते हैं जिसका कर्म पवित्र हो, क्योंकि ईश्वर स्वयं ‘सत्’ और ‘कर्म’ का स्वरूप हैं।
कर्म ही जीवन की असली कमाई है।
कर्म ही वह चाबी है जो भविष्य के सभी द्वार खोलती है।
कर्म ही वह सूर्य है जो अंधकार मिटा देता है।
कर्म ही वह नाव है जो मनुष्य को संसार-सागर से पार कराती है।
संसार में जो कुछ बदलता है, वह सब बाहरी है। जो नहीं बदलता, वह केवल कर्म का फल है।
इसीलिए ऋषियों ने कहा —
“कर्म ही मनुष्य का सौंदर्य है, उसकी शक्ति है, उसका धन है, और उसका सच्चा साथी भी।”
जिस दिन मनुष्य समझ लेता है कि उसका वास्तविक धन केवल उसका कर्म है, उस दिन उसके भीतर ईश्वर का प्रकाश उतरने लगता है। वह मुक्त हो जाता है भय से, मोह से, लालच से, ईर्ष्या से — क्योंकि उसे पता है कि जो वह बोएगा वही उसे मिलेगा।
अंत में केवल एक ही सत्य रह जाता है —
कर्म ही जीवन का वास्तविक धन है।
जो इसे समझ गया, उसने जीवन समझ लिया;
जो इसे जी गया, उसने ईश्वर पा लिया।
- कर्म जीवन का वास्तविक और शाश्वत धन है — न कि भौतिक संपत्ति।
- कर्म हमारे वर्तमान, मृत्यु और अगले जन्म को प्रभावित करते हैं।
- कर्म की पवित्रता ही व्यक्ति की सच्ची पहचान और आंतरिक शक्ति है।
आज एक छोटा-सा अभ्यास करें: अपने दिन में किए गए एक कर्म पर विचार करें — क्या वह दूसरों के हित में था? इसे सुधारने का संकल्प लें।
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FAQ — अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. क्या केवल अच्छे कर्म करने से जीवन सुरक्षित हो जाता है?
अच्छे कर्म जीवन में स्थिरता और सच्ची सफलता देते हैं। वे बाहरी सुरक्षा का विकल्प नहीं हैं, परन्तु आंतरिक शक्ति और शांति प्रदान करते हैं जो जीवन की असली स्थिरता है।
2. क्या कर्म से पुनर्जन्म भी प्रभावित होता है?
हाँ। शास्त्रों के अनुसार कर्म का फल अगले जन्मों तक प्रभावित करता है — इसलिए कर्मों की शुद्धि और निष्ठा अत्यंत आवश्यक है।
3. क्या केवल विचार भी कर्म होते हैं?
हाँ। विचार भी कर्म का ही स्वरूप हैं — सोते समय, जागते समय और मौन में भी मन कर्म करता है। इसलिए विचारों की शुद्धि पर भी ध्यान देना चाहिए।
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