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मंदिरों की सुरक्षा और सनातन उत्तरदायित्व

 


दिसंबर 2025 के अंत में एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक विषय सामने आया है — मंदिरों की सुरक्षा। बिहार में बढ़ते मंदिर चोरी और मूर्ति-अपहरण की घटनाओं को देखते हुए बिहार स्टेट रिलिजियस ट्रस्ट काउंसिल (BSRTC) ने घोषणा की है कि जनवरी 2026 में एक ट्रस्ट-स्तरीय विशेष बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में राज्य के सभी मंदिर प्रबंधकों को बुलाया जाएगा, ताकि मंदिरों के संरक्षण, सुरक्षा और प्रबंधन को लेकर ठोस निर्णय लिए जा सकें।

यह विषय केवल प्रशासनिक चिंता का नहीं है, बल्कि सनातन समाज की सामूहिक पीड़ा को दर्शाता है। मंदिरों में होने वाली चोरियाँ केवल धन या धातु की चोरी नहीं होतीं, बल्कि वे आस्था, इतिहास और संस्कृति पर आघात होती हैं। कई मंदिरों की मूर्तियाँ सैकड़ों वर्षों पुरानी होती हैं, जिनमें पीढ़ियों की श्रद्धा और तपस्या समाहित रहती है। जब ऐसी मूर्तियाँ चोरी होती हैं, तो केवल एक वस्तु नहीं जाती — एक जीवित परंपरा टूटती है।

BSRTC द्वारा बुलाई जा रही यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि मंदिरों की सुरक्षा को लेकर समन्वित प्रयासों की कमी है। कई छोटे और ग्रामीण मंदिर ऐसे हैं, जहाँ न तो पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था है, न ही आधुनिक तकनीक का उपयोग। ऐसे मंदिर सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं। बैठक का उद्देश्य यही बताया गया है कि सभी मंदिर प्रबंधक मिलकर साझा रणनीति बनाएँ — चाहे वह CCTV, स्थानीय स्वयंसेवकों की भूमिका, रात्रि निगरानी या प्रशासन के साथ बेहतर समन्वय हो।

सनातन परंपरा में मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि समाज का केंद्र होता है। वहीं संस्कार होते हैं, वहीं उत्सव होते हैं, वहीं शरण मिलती है। ऐसे में मंदिरों की सुरक्षा केवल सरकार या ट्रस्ट की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की भी है। यदि श्रद्धालु जागरूक हों, स्थानीय स्तर पर सहयोग करें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर ध्यान दें, तो कई घटनाओं को रोका जा सकता है। BSRTC की यह पहल उसी सामूहिक ज़िम्मेदारी की ओर एक कदम मानी जा रही है।

जनवरी 2026 की यह प्रस्तावित बैठक एक अवसर भी है — केवल ताले और कैमरे लगाने का नहीं, बल्कि यह सोचने का कि हम अपने देवालयों को कितनी प्राथमिकता देते हैं। सुरक्षा व्यवस्था बनाते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक होगा कि मंदिर की मर्यादा और वातावरण प्रभावित न हो। सनातन धर्म में सुरक्षा का अर्थ भय नहीं, संरक्षण है — शांति के साथ किया गया संरक्षण।

यह खबर आज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें जगाती है। यह याद दिलाती है कि यदि हम अपने मंदिरों के प्रति सजग नहीं होंगे, तो हमारी सांस्कृतिक धरोहर धीरे-धीरे असुरक्षित होती चली जाएगी। BSRTC की बैठक से यदि ठोस और व्यावहारिक निर्णय निकलते हैं, तो यह न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण बन सकता है — कि सनातन परंपरा की रक्षा केवल भावना से नहीं, बल्कि जागरूकता और जिम्मेदारी से होती है।

लेखक / Writer : तुकाराम📿
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद


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