मत्स्य अवतार — भगवान विष्णु की लीला और मनु की रक्षा
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा सुना रहा हूँ – वह लीला, जहाँ ईश्वर ने एक छोटी मछली के रूप में प्रकट होकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा का विधान किया।
बहुत प्राचीन काल में, जब वर्तमान कल्प के अंत का समय निकट आ रहा था, तब यह निश्चय था कि एक महाप्रलय आएगी – जल सब ओर फैल जाएगा, और सृष्टि की जो भी बाहरी रचनाएँ हैं, वे विलीन हो जाएँगी। पर ब्रह्माण्ड की अगली रचना के लिए कुछ अत्यंत आवश्यक तत्वों की रक्षा करना ज़रूरी था – जैसे वेदों का ज्ञान, मनु (आगामी मानव–पुरुष) की रक्षा, और प्राणियों के बीज–रूप। इसी प्रसंग में मत्स्य अवतार की लीला आती है।
कथा का मुख्य रूप श्रीमद्भागवत महापुराण में यह है कि एक दिन राजा सत्यव्रत, जो आगे चलकर सप्तम मन्वंतर के वैवस्वत मनु कहलाए, प्रातःकाल नदी में अर्घ्य दे रहे थे। जब वे जल हथेली में लेकर संध्या–उपासना कर रहे थे, तभी उनकी अंजलि में एक बहुत छोटी–सी मछली आ गई। मछली ने मानो करुण स्वर में उनसे “रक्षा” की याचना की। सत्यव्रत को करुणा आई; उन्होंने सोचा – यह इतनी छोटी है, बड़ी मछलियाँ इसे खा जाएँगी, इसे बचा लेना चाहिए। उन्होंने उसे अपने कमंडलु के जल में रख लिया।
कुछ ही समय में अद्भुत बात हुई – वह छोटी मछली कमंडलु के भीतर ही बड़ी होने लगी। सत्यव्रत ने सोचा कि अब कमंडलु छोटा पड़ गया, उन्होंने मछली को एक बड़े घड़े में रखा। मछली वहाँ भी बढ़ती गई। फिर उन्होंने उसे तालाब में छोड़ा – वहाँ भी वह शीघ्र ही इतनी बड़ी हो गई कि तालाब छोटा लगने लगा। तब राजा ने समझा कि यह कोई साधारण जीव नहीं। उन्होंने मछली को नदी में, और उसके बाद समुद्र में छोड़ना चाहा; पर हर बार मछली उनसे ही संवाद करती रही – “राजन, मैं तेरी भक्ति की परीक्षा ले रहा हूँ, मैं कोई साधारण जीव नहीं हूँ।” राजहृदय में यह विश्वास दृढ़ होता गया कि यह स्वयं भगवान विष्णु का रूप हैं।
तब उस मत्स्य–रूप भगवान ने सत्यव्रत से स्पष्ट कहा – “एक निश्चित काल बाद इस पृथ्वी पर महाप्रलय का जल फैल जाएगा। जब जल चारों ओर छा जाएगा, तब तुम एक विशाल नौका तैयार रखना। समय आने पर मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊँगा। उस नौका में तुम सात ऋषियों (सप्तर्षि), जीवों के बीज–रूप, और वेद–ज्ञान की परंपरा को सुरक्षित रखना। जब प्रलय का जल बढ़ेगा, तब तुम्हें मेरी सहायता से उस नाव को स्थिर रखना होगा। यही से अगले मन्वंतर की सृष्टि पुनः आगे बढ़ेगी।”
जब नियत समय आया, आकाश में घने बादल छा गए, प्रलय–वृष्टि होने लगी। समुद्र अपनी मर्यादा छोड़कर भूमि पर फैलने लगा, नदियाँ उफनकर सब दिशाओं में फैल गईं। सत्यव्रत ने भगवान के वचनानुसार नौका तैयार की हुई थी; सप्तर्षियों सहित वे उस नौका पर आरूढ़ हुए, साथ में जीवों के बीज, वनस्पतियों के बीज और आवश्यक वस्तुएँ थीं। तभी क्षीरसागर जैसे विस्तृत जल के बीच एक विशाल मत्स्य दिखाई दिया – उसके सींग थे, देह तेजोमय थी। सत्यव्रत ने पहचान लिया – यह वही मत्स्य–रूप विष्णु हैं।
भगवान मत्स्य ने कहा – “राजन, अब इस नौका को मेरे सींगों से बाँध दो।” शास्त्रों में वर्णन आता है कि नागराज वासुकि को रस्सी बनाकर नाव को मत्स्य के सींग से बाँधा गया। भगवान मत्स्य उस नाव को प्रलय–जल में स्थिर रूप से लिए हुए चलते रहे, ताकि लहरों के वेग से नाव पलटे नहीं, खोए नहीं। उस समय भगवान मत्स्य ने सत्यव्रत और सप्तर्षियों को धर्म, सृष्टि–चक्र, आत्म–तत्त्व, तथा भगवद–भक्ति का गूढ़ ज्ञान भी सुनाया – इसे ही कई स्थानों पर “मत्स्योपदेश” के रूप में वर्णित किया जाता है।
जब प्रलय–काल समाप्त हुआ, जल घटने लगा, तब नाव हिमालय की किसी ऊँची चोटी पर स्थिर हुई। सत्यव्रत को तब वैवस्वत मनु के रूप में अगली सृष्टि के मूल–पुरुष का पद मिला। उन्होंने आगे चलकर मनु–स्मृति, धर्म–व्यवस्था और मानव–जाति के पुनः विस्तार का कार्य संभाला। इस तरह एक छोटे–से घटना–क्रम से लेकर संपूर्ण मन्वंतर–व्यवस्था तक, सब मत्स्य–अवतार से जुड़ जाता है।
मत्स्य अवतार का भाव यह है कि ईश्वर जब भी आते हैं, केवल “शक्ति–प्रदर्शन” के लिए नहीं आते, बल्कि ज्ञान, धर्म और जीवन–बीज की रक्षा के लिए आते हैं। एक छोटी–सी मछली को बचाने की सरल करुणा से शुरू हुई यात्रा, धीरे–धीरे यह प्रकट करती है कि वही करुणा आगे चलकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा का कारण बनती है। राजा सत्यव्रत की करुणा, श्रद्धा और वचन–निष्ठा ने उन्हें मनु के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचाया – यानी मनुष्य के लिए मार्ग यही है: करुणा, सत्य, और ईश्वर में निष्ठा।
आज भी जब हम मत्स्य–अवतार का स्मरण करते हैं, तो यह केवल “पहला अवतार” याद करना नहीं है, बल्कि यह समझना भी है कि ईश्वर सबसे सरल, सबसे छोटे रूप में भी सामने आ सकते हैं – बस हृदय में पहचानने की आँख होनी चाहिए। जो उस छोटी मछली में भी दिव्यता देख ले, उसके लिए प्रलय के बीच भी नाव और मार्ग दोनों तैयार हो जाते हैं।
स्रोत / ग्रंथ–संदर्भ (Reference)
- श्रीमद्भागवत महापुराण, अष्टम स्कन्ध – मत्स्य अवतार, हयग्रीव द्वारा वेद–चोरी, प्रलय और मनु–नौका प्रसंग।
- मत्स्य पुराण – भगवान के मत्स्य–रूप और धर्मोपदेश का विस्तृत वर्णन।
- महाभारत, शांति पर्व – प्रलय, मनु और नाव–प्रसंग का संकेत।
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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