मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे डर से नहीं, साहस से जीना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं आपको सनातन धर्म की उस शक्ति के बारे में बताने आया हूँ जो इंसान को भीतर से मजबूत बनाती है — साहस।
सनातन धर्म कभी यह नहीं सिखाता कि डरकर जियो, चुप रहो या अन्याय सहते रहो। यह धर्म कहता है — डरो मत, सच के साथ खड़े रहो और अपने भीतर की शक्ति को पहचानो।
हमारे धर्म में साहस का मतलब लड़ाई या झगड़ा नहीं है। साहस का अर्थ है सच बोलने का हौसला, गलत को गलत कहने की हिम्मत और सही रास्ते पर अकेले चलने का आत्मबल।
जब जीवन कठिन हो जाता है और परिस्थितियाँ दबाव बनाती हैं, तब सनातन धर्म हमें याद दिलाता है कि तुम कमजोर नहीं हो। तुम्हारे भीतर वही शक्ति है जिससे यह सृष्टि चल रही है।
इसीलिए हमारे मंत्र डर पैदा नहीं करते, बल्कि आत्मविश्वास जगाते हैं। वे हमें यह स्मरण कराते हैं कि जो भीतर शांत है, वही बाहर अडिग रहता है।
मैं तु ना रिं आपसे यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप कठिन समय में भी संतुलन बनाए रखते हैं, यदि आप अन्याय के सामने चुप नहीं रहते और यदि आप खुद पर भरोसा रखते हैं, तो आप सनातन धर्म को सही अर्थों में जी रहे हैं।
यही धर्म हमें सिखाता है कि डर मन की बीमारी है और साहस आत्मा की पहचान। जो अपनी आत्मा को पहचान लेता है, वह किसी से नहीं डरता।
और इसी साहस की शिक्षा के कारण मैं पूरे गर्व से कहता हूँ — “हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे निर्भय होकर सत्य के साथ जीना सिखाता है।”
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