मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म शांति को सबसे बड़ा बल मानता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं आपको सनातन धर्म की उस शक्ति के बारे में बताना चाहता हूँ जिसे लोग अक्सर कमजोरी समझ लेते हैं, पर वास्तव में वही सबसे बड़ा बल है — शांति।
सनातन धर्म कभी यह नहीं कहता कि ताकत का मतलब लड़ना है। हमारे धर्म में कहा गया है कि जो अपने मन को जीत ले, वही सबसे बड़ा विजेता है। इसीलिए यहाँ तलवार से ज़्यादा ध्यान को महत्व दिया गया, और क्रोध से ज़्यादा करुणा को।
हमारे पूर्वज जानते थे कि क्रोध कुछ पल की ताकत देता है, लेकिन शांति जीवनभर की शक्ति देती है। इसी कारण उन्होंने युद्ध से पहले भी शांति का प्रयास किया, और विजय के बाद भी अहंकार नहीं किया।
सनातन धर्म सिखाता है कि शांति बाहर नहीं, अंदर पैदा होती है। जब मन शांत होता है, तो शब्द अपने आप मधुर हो जाते हैं। जब मन शांत होता है, तो निर्णय सही होने लगते हैं। और जब मन शांत होता है, तो जीवन सरल हो जाता है।
आज की दुनिया तेज़ बोलने वालों को ताकतवर मानती है, लेकिन सनातन धर्म धीरे, सोच-समझकर बोलने वाले को ज्ञानी मानता है। क्योंकि शांति का मतलब डरना नहीं, शांति का मतलब है अपने ऊपर पूरा नियंत्रण।
मैं तु ना रिं आपसे यही कहना चाहता हूँ कि अगर आप किसी को माफ कर सकते हैं, अगर आप बिना गुस्से के बात कर सकते हैं, अगर आप मुश्किल में भी संतुलन रख सकते हैं, तो समझिए आप सनातन धर्म को जी रहे हैं।
यही धर्म हमें सिखाता है कि दुनिया को बदलने से पहले अपने मन को शांत करो, क्योंकि शांत मन से निकला हर कर्म कल्याण करता है।
और इसी शिक्षा के कारण मैं गर्व से कहता हूँ — हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे शांति को मेरी सबसे बड़ी शक्ति मानना सिखाता है।
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