अहिंसा — शक्ति नहीं, चेतना का नियम
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें उस सर्वोच्च नियम के बारे में बताने आया हूँ जिसे सभी धर्मों में सराहा गया, पर सनातन में इसे केवल चेतना का नियम माना गया — अहिंसा।
अहिंसा केवल किसी को चोट न पहुँचाना नहीं है। यह मन, वाणी और कर्म तीनों में संपूर्ण शुद्धता बनाए रखने का विज्ञान है। क्योंकि असली हिंसा शरीर से नहीं, मन और वाणी से होती है।
ऋषियों ने बताया — जो क्रोध में बोलता है, वो हिंसा कर रहा है। जो द्वेष में सोचता है, वो हिंसा कर रहा है। जो स्वार्थ के लिए दूसरों का नुकसान करता है, वो हिंसा कर रहा है।
सनातन धर्म में अहिंसा की गहराई इतनी है कि यह केवल व्यक्ति तक सीमित नहीं, संपूर्ण जीवन और प्रकृति तक फैलती है। गाय, वृक्ष, नदी, हवा — सब में जीवन है, और जीवन का सम्मान करना असली अहिंसा है।
महात्मा गांधी ने इसे सरल शब्दों में कहा — “अहिंसा केवल कमजोर की नीति नहीं, बल्कि सबसे महान ताकत है।”
पर सनातन धर्म और भी आगे जाता है — अहिंसा केवल रोक नहीं है, यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार है। जब अहिंसा अपनाई जाती है, तो मन शांत होता है, कर्म शुद्ध होते हैं, और चेतना जाग्रत होती है।
इसलिए कहा गया है — “अहिंसा से बड़ा कोई धर्म नहीं।” और याद रखो — अहिंसा केवल बाहरी संघर्ष में नहीं, भीतर की लड़ाई में भी लागू होती है। अपने क्रोध, द्वेष और लालच को परास्त करना भी अहिंसा है।
सनातन धर्म में यही शक्ति है — अहिंसा केवल नियम नहीं, यह जीवन का सर्वोच्च विज्ञान है।
✍🏻 लेखक: तु ना रिं
🌿 सनातन इतिहास ज्ञान श्रृंखला
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