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लक्ष्मीपूजन: अमावस्या की रात और समृद्धि का महत्व | Sanatan Sanvad

लक्ष्मीपूजन: अमावस्या की रात और समृद्धि का महत्व | Sanatan Sanvad

लक्ष्मीपूजन: अमावस्या की रात और समृद्धि का महत्व

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अमावस्या की रात जब आकाश पूरी तरह अँधेरे में डूबा होता, तब मनुष्य की चेतना स्वयं उस अंधकार से लड़ती थी। यह रात केवल सूर्य और चंद्रमा की अनुपस्थिति का प्रतीक नहीं थी; यह उस भीतरी अज्ञान का समय था, जिसे मनुष्य हर वर्ष अपने भीतर अनुभव करता। तभी घर-आँगन, नदी किनारे, खेत और आश्रम, सब जगह दीप जलाए जाते थे। दीप केवल प्रकाश का साधन नहीं, बल्कि चेतना का दर्पण है। वासुबारस में हमने गौ के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की, धनतेरस में जीवनोपयोगी साधनों और स्वास्थ्य का स्मरण किया, नरक चतुर्दशी में भीतर के अंधकार का नाश किया और अब लक्ष्मीपूजन का यह पर्व समृद्धि और स्थायित्व का प्रतीक बनता है।

लक्ष्मीपूजन में गौ का महत्व अनिवार्य रूप से शामिल रहता है, क्योंकि हिन्दू संस्कृति में गाय केवल दूध, घी या कर्म के लिए नहीं, बल्कि जीवन और समृद्धि की धारा है। यदि ध्यान दें तो वैदिक साहित्य में गाय को वसुधा का प्रतीक माना गया है। उसके दूध से बने घृत से यज्ञ में अग्नि प्रज्वलित होती, उसकी सेवा से गृह में शांति आती और उसकी सुरक्षा से अन्न और पशुधन की वृद्धि होती। अमावस्या की रात इस कारण विशेष है कि उस दिन जो घर में गाय का सम्मान और सेवा पूरी श्रद्धा से किया जाता है, उसी घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। यदि गाय घर की देखभाल कर सकती है, अन्न और घृत का संरक्षण कर सकती है, तो वही घर धन, सौभाग्य और संतोष का आधार बनता है।

कथा पुराणों में कही गई है कि यह रात जब नरकासुर का अंत हुआ, तब भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी ने पृथ्वी पर प्रवेश किया। लक्ष्मी केवल वैभव की देवी नहीं थीं; वह जीवन की समृद्धि, स्वास्थ्य, स्थायित्व और आंतरिक संतुलन का रूप थीं। उस समय लोग घरों को स्वच्छ करते, दीप जलाते, वस्त्र और आभूषण सजाते और पूजा के लिए स्नान करके शुद्धचित्त होते। यही कारण है कि आज भी इस रात स्नान और घर की सफाई का विधान है। गृहस्थ स्त्रियाँ सुबह से ही घर को झाड़ू-पोंछ कर, आंगन और द्वारों में हल्दी, कुमकुम और तिल से शुभ चिह्न बनाती हैं, ताकि लक्ष्मी का स्वागत पवित्र वातावरण में हो।

वास्तविक लक्ष्मीपूजन केवल धन की प्राप्ति का पर्व नहीं है। यह चेतना का पर्व है कि यदि मन, काया और कर्म शुद्ध हों, तभी समृद्धि स्थायी होती है। इसलिए इस दिन लोगों को गृह में स्थिर और स्थायी दीपक रखने की सलाह दी जाती है। दीपक के प्रकाश को प्रतीक माना जाता है कि जो कुछ भी मनुष्य के जीवन में उजाला करता है—ज्ञान, विवेक, सहयोग, सद्भाव और कृतज्ञता—वह दीप लक्ष्मी का निमंत्रण समझकर प्रज्वलित किया जाता है।

एक प्राचीन कथा है, जिसे कई लोककथाओं और पुराणों ने संजोया है। कहते हैं कि एक बार एक गृहस्थ अत्यंत दरिद्र था। उसने यथासंभव साधन जुटाए और अमावस्या की रात पूरे विधि-विधान से लक्ष्मीपूजन किया। उसने अपने घर की गौशाला को विशेष रूप से सजाया, गाय को हरी घास और ताजे फल दिए, उसके बछड़ों को लाड-प्यार से संभाला। गृहस्थ का यह समर्पण केवल धन के लिए नहीं था, बल्कि जीवन के मूल्यों और कृतज्ञता के लिए था। उसकी घर में साधारण दीपक जलाए गए थे, लेकिन उसकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि देवी लक्ष्मी स्वयं उसकी गृह में प्रवेश कर गईं। यही कथा बताती है कि लक्ष्मी केवल संपत्ति की देवी नहीं, वह आंतरिक शुद्धि, सेवा भाव और जीवन में संतुलन की देवी हैं।

इस दिन कुछ गृहस्थ विशेष रूप से नौ-दीपक व्यवस्था करते हैं। नौ दीपक को घर के नौ कोनों में रखते हैं—आंगन, मुख्य द्वार, किचन, गोशाला, बैठक कक्ष, स्नानघर, बालक के कमरे, पूजा स्थल और बगीचा—क्योंकि पुराणों में नौ प्रकार के लाभ बताए गए हैं: ज्ञान, आयु, संतोष, वैभव, स्वास्थ्य, पुत्र, सौभाग्य, मित्र और भूमि का कल्याण। दीपक जलाना केवल विधि नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक अभ्यास है कि इन सभी क्षेत्रों में प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।

गाय का योगदान इस दिन भी प्रमुख होता है। पूजा के पश्चात गौ को ताजे चारे, घास, फल और चावल दिया जाता है। उसे स्नान कराते और उसके सींगों पर हल्दी-कुंकुम या पुष्पार्चन करते। यह केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि चेतना की एक शिक्षण प्रक्रिया है कि जीवन की वास्तविक समृद्धि उन प्राणियों की सुरक्षा और सेवा में निहित है जो हमें पोषण देते हैं। यही कारण है कि लक्ष्मीपूजन में केवल दीप जलाना और धन का पूजन करना पर्याप्त नहीं—गौ के प्रति कृतज्ञता और सेवा ही वास्तविक लक्ष्मी को आमंत्रित करती है।

अमावस्या की रात और लक्ष्मीपूजन की गहनता यह भी सिखाती है कि समृद्धि केवल भौतिक धन में नहीं, बल्कि ज्ञान, सेवा, प्रेम और विवेक में निहित है। यदि गृहस्थ अपने घर और परिवार को शुद्ध रखे, अपने अन्न और औजारों का सम्मान करे, और भीतर की क्रोध, लोभ और अभिमान की अंधकार को मिटाए, तो वही उसकी वास्तविक लक्ष्मी है। यही दीपावली का मुख्य संदेश है—अमावस्या की रात में जब घर अंधकार से शुद्ध हो जाता है, तभी दीपक और दीपिका लक्ष्मी की प्रतीक बनकर प्रवेश करती हैं।

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Author/ writer: तुनारिं

Published by: सनातन संवाद © 2025

Labels: Diwali, Festivals, Traditional, Indian Rituals

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