ज्ञान केवल किताबों, शास्त्रों या इंटरनेट के पन्नों तक सीमित नहीं है। वह केवल शब्दों, सूत्रों या आंकड़ों का संग्रह भी नहीं है। ज्ञान वह प्रकाश है जो अंधकार में मार्ग दिखाता है, जो मनुष्य को भ्रम से मुक्त करता है, जो उसके भीतर के आत्मबल और विवेक को जागृत करता है। और इस प्रकाश को जब तक कोई दीपक नहीं जलाता, तब तक वह अधूरा रहता है। वही दीपक है गुरु।
गुरु केवल शिक्षक नहीं होता, वह मार्गदर्शक, चेतन शक्ति, प्रेरणा और कभी-कभी वह प्रतिबिंब है जिसमें छात्र अपने आप को देख सकता है। गुरु के बिना शिष्य केवल जानकारी प्राप्त कर सकता है, परंतु अनुभव, समझ और विवेक नहीं। ज्ञान का शाब्दिक अर्थ “ज्ञा” है — जानना, समझना, अनुभव करना। गुरु ही वह साधन है जो इस जानने की प्रक्रिया को जीवन से जोड़ता है।
ऋषियों ने गुरु को देवता समान माना है। वेदों में कहा गया है – “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।” अर्थात गुरु ब्रह्मा है, विष्णु है, महेश्वर है और सीधे परमब्रह्म का रूप है। यह केवल आडंबर नहीं, बल्कि जीवन का गूढ़ सत्य है। क्योंकि जब कोई व्यक्ति बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करता है, वह भले ही कितने भी ग्रंथ पढ़ ले, कितने भी विचारों का अध्ययन कर ले, परंतु वह केवल बाहरी ज्ञान ही प्राप्त करता है। उसके भीतर परिवर्तन नहीं होता। उसके जीवन में वह प्रकाश नहीं आता जो गुरु के मार्गदर्शन से आता है।
गुरु वह है जो अज्ञान के अंधकार में दीप जलाता है। जैसे सूरज अपने प्रकाश से सबको समान रूप से प्रकाशित करता है, वैसे ही गुरु अपने अनुभव, विवेक और ज्ञान से शिष्य को समझाता है। गुरु केवल विषय नहीं पढ़ाता, वह जीवन जीने की कला सिखाता है। वह बताता है कि कौन सा ज्ञान कर्म के लिए उपयोगी है, कौन सा ज्ञान मन को भ्रमित करता है, कौन सा ज्ञान आत्मा को जागृत करता है।
महाभारत और भगवद गीता में भी यह सत्य स्पष्ट है। अर्जुन चाहे जितना भी शास्त्र जानता हो, युद्ध का कूटनीति समझता हो, नीतिशास्त्र जानता हो, पर जब तक श्रीकृष्ण ने उसे मार्ग दिखाया, तब तक उसका ज्ञान अधूरा था। श्रीकृष्ण ने केवल शिक्षा नहीं दी, उन्होंने अर्जुन के भीतर छिपी प्रतिभा, उसकी विवेक शक्ति और उसके धैर्य को जागृत किया। यही गुरु का कार्य है — केवल पढ़ाना नहीं, बल्कि शिष्य के भीतर से प्रकाश निकालना।
गुरु का महत्व केवल छात्र-गुरु के रिश्ते में नहीं है। वह जीवन के हर आयाम में मार्गदर्शक हो सकता है। कभी माता-पिता गुरु बन जाते हैं, कभी अनुभव गुरु बन जाता है, और कभी साधारण व्यक्ति भी गुरु की भूमिका निभा सकता है। असली गुरु वह है जो अपने ज्ञान, अपने अनुभव और अपने आत्मबल से किसी अन्य की आत्मा को प्रज्वलित कर सके।
गुरु के बिना ज्ञान अधूरा होने का अर्थ केवल सूचना का अभाव नहीं है। इसका अर्थ यह है कि जीवन का वह मार्ग जो अज्ञान से प्रकाश की ओर ले जाता है, वह अवरुद्ध रह जाता है। कोई भी शास्त्र, कोई भी पुस्तक, कोई भी तकनीक तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक उसके गूढ़ अर्थ को कोई प्रकाशित नहीं करता। और वही गुरु करता है — वह समझाता है, दिखाता है, अनुभव कराता है और अंततः शिष्य को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
सत्य और ज्ञान का भंडार अत्यधिक विशाल है, परंतु उसका सार वही है जो गुरु के माध्यम से जीवित होता है। बिना गुरु के, ज्ञान केवल शब्द बनकर रह जाता है। और शब्द बिना अनुभव और समझ के केवल ध्वनि होते हैं। इसलिए ऋषियों ने बार-बार कहा कि “गुरु के बिना शिक्षा व्यर्थ है, गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है, गुरु के बिना जीवन उजियारा नहीं है।”
गुरु केवल बाहर से मार्गदर्शन नहीं करता, वह शिष्य के भीतर तक प्रवेश करता है। उसका उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि शिष्य की चेतना को परिवर्तित करना है। यही कारण है कि गुरु की महिमा सर्वोपरि मानी गई है। और जब शिष्य पूरी श्रद्धा, पूरी निष्ठा और पूर्ण समर्पण से गुरु के मार्गदर्शन को अपनाता है, तभी ज्ञान पूर्णता को प्राप्त करता है।
इसलिए जीवन में किसी भी ज्ञान को अधूरा न समझें। अगर कोई ज्ञान आपके पास है और आपको उसका सार नहीं समझ आता, या जीवन में उसका उपयोग नहीं हो पाता, तो उसे अधूरा मत मानिए। वह अधूरा इसलिए है कि आपको उसे पूर्ण करने के लिए गुरु की आवश्यकता है। गुरु ही वह पुल है जो मानव को अज्ञान से ज्ञान, भ्रम से विवेक और अंधकार से प्रकाश तक ले जाता है।
गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का ऐसा नियम है जिसे समझने और अपनाने पर ही जीवन सार्थक और उज्ज्वल बनता है।
गुरु का महत्व
गुरु ज्ञान का दीपक है जो अज्ञान के अंधकार में प्रकाश देता है।
गुरु केवल शिक्षक नहीं, मार्गदर्शक, चेतन शक्ति और प्रेरणा होते हैं।
बिना गुरु ज्ञान केवल शब्द और सूचना बनकर रह जाता है।
गुरु शिष्य की चेतना को परिवर्तित कर जीवन को सार्थक बनाते हैं।
गुरु का मार्गदर्शन आत्मा को जागृत कर मोक्ष की ओर ले जाता है।
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