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हनुमान जी के जन्म की कथा | अंजनानंदन हनुमान, वायु-पुत्र और शिव-अंशावतार

हनुमान जी के जन्म की कथा | अंजनानंदन हनुमान, वायु-पुत्र और शिव-अंशावतार

हनुमान जी के जन्म की कथा (अंजनानंदन वायु-पुत्र हनुमान)

हनुमान जी का जन्म, अंजना और केसरी, वायु-पुत्र हनुमान की बाल लीला

नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।

आज मैं तुम्हें हनुमान जी के जन्म की कथा (अंजनानंदन हनुमान) सुना रहा हूँ

बहुत प्राचीन समय में किष्किंधा प्रदेश में एक महान वानर थे – केसरी। वे पराक्रमी, धर्मनिष्ठ और शिव–भक्त थे। उनकी पत्नी का नाम था अंजना। अंजना पूर्वजन्म में एक अप्सरा कही गई हैं, जिन पर शाप के कारण उन्हें वानरी–देह प्राप्त हुई; जब तक वे एक तेजस्वी पुत्र को जन्म न दें, तब तक यह शाप हटना नहीं था – यह भाव कई पुराण–कथाओं में आता है। अंजना और केसरी दोनों ही ईश्वर–भक्त थे और एक दिव्य, तेजस्वी पुत्र की कामना करते थे जो लोक–कल्याण में सहायक हो।

उधर एक दूसरी दिशा में कथा चलती है – दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके फलस्वरूप एक दिव्य पायस (खीर) अग्नि से प्रकट हुई, जिसे विभाजित कर के कैकेयी, कौसल्या और सुमित्रा को दिया गया। इसी पायस के प्रसाद से श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का अवतार हुआ। कथा–परंपरा के अनुसार (और यह वर्णन मुख्यतः रामायण–उपरांत पुराण–कथाओं व लोक–परंपरा में मिलता है), उस पायस का थोड़ा अंश आकाशमार्ग से पक्षिराज गरुड़ द्वारा ले जाया गया और वह अंजना के हाथों में पहुँचा, या कुछ संस्करणों में कहते हैं कि वायु ने पवित्र वायु–मार्ग से उस पायस के दिव्य प्रभाव को अंजना के गर्भ तक पहुँचाया। इसीलिए हनुमान जी को वायु–पुत्र कहा जाता है – वायु देव ने ही उनके प्राण–तत्त्व में विशेष प्रभाव डाला।

वाल्मीकि रामायण स्वयं हनुमान के जन्म–वर्णन को विस्तार से नहीं बताती, बल्कि उन्हें “वायु–सुत, “मारुत–आत्मज”, “केसरीनंदन” कहती है – जिससे इतना स्पष्ट हो जाता है कि उनके लौकिक पिता केसरी और आध्यात्मिक/दैवी समर्थन वायु देव हैं। आगे की परंपरा में पुराणों व भक्ति–ग्रंथों ने इस जन्म–कथा को और स्पष्ट रूप से जोड़ा – कि अंजना ने शिव की आराधना की, वायु ने उनके गर्भ में दिव्य तेज स्थापित किया, और इसी से हनुमान का जन्म हुआ। कुछ ग्रंथों में तो हनुमान को शिव–अंशावतार भी कहा गया है।

जब समय आया, तो अंजना ने एक अत्यंत तेजस्वी, वानर रूप बालक को जन्म दिया – यही थे हनुमान। उनके मुख–मंडल, बल, उछाल और तेज को देखकर ही सब समझ गए कि यह कोई साधारण वानर–शिशु नहीं है। बालक का मन अत्यंत चंचल और निर्भीक था। एक प्रसिद्ध बाल–लीला, जो रामायण–उत्तर परंपरा में विख्यात है, यह है कि एक दिन सुबह–सुबह बाल हनुमान ने आकाश में उगता हुआ सूर्य देखा। उन्हें वह पका हुआ लाल फल जैसा दिखा। वे भूख से प्रेरित होकर उसे फल समझ बैठे और बोले – “यह तो बड़ा सुंदर लाल फल है, मैं इसे खा लूँगा।”

वे अपनी स्वभावजन्य गति से आकाश की ओर उछले और सूर्य की ओर दौड़ पड़े। सूर्य–लोक की ओर उनका यह आरोहण साधारण नहीं था; वे बढ़ते गए, बढ़ते गए, मार्ग में आने वाले ग्रह–नक्षत्र भी उनके वेग से चकित हो गए। सूर्य–देव ने देखा कि एक बालक अप्रतिम वेग से उनकी तरफ़ आ रहा है। उसी समय इंद्र ने भी यह दृश्य देखा; उन्हें लगा कि कोई तेजस्वी प्राणी सूर्य–मंडल को बाधित करने चला आ रहा है। इंद्र ने अपने वज्र से प्रहार किया। वज्र के आघात से हनुमान जी की ठोड़ी (हनु) पर चोट लगी, वे नीचे गिरे और बेहोश हो गए। इसी कारण से एक अर्थ में उनका नाम “हनुमान” कहा गया – जिनकी हनु पर विशेष घटना हुई।

जब वायु देव ने देखा कि उनके पुत्र–तुल्य हनुमान को वज्र से चोट लगी है और वे अचेत पड़े हैं, तो वे अत्यंत क्रोधित और दुखी हो गए। उन्होंने अपना प्राण–तत्त्व समेट लिया – परिणाम यह हुआ कि समस्त लोकों में वायु का प्रवाह रुक–सा गया। प्राण–वायु रुकने से देवता, मनुष्य, जीव सबकुछ व्याकुल होने लगे। तब सारे देवगण ब्रह्मा, इंद्र आदि के साथ एकत्र होकर वायु को शांत करने पहुँचे, हनुमान को जीवनदान और वरदान दिए।

इंद्र ने अपने किए पर पश्चात्ताप करते हुए हनुमान को वर दिया कि वज्र फिर कभी उन्हें अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दे पाएगा। ब्रह्मा जी ने उन्हें अभय दिया। वरुण ने कहा कि जल उन्हें बाँध नहीं सकेगा; अग्नि ने वर दिया कि अग्नि उनका दाह नहीं कर पाएगी; यम ने कहा कि उनका आयु–ह्रास यम–रूप से नहीं होगा; कुबेर ने धन–सम्बंधी भय से रक्षा का वर दिया; और सबसे महत्त्वपूर्ण, वायु–देव ने उन्हें बल, वेग और अदम्य उत्साह का आशिर्वाद दिया। इस प्रकार हनुमान, बाल्यावस्था से ही अनेक देवताओं के वरदानों से संपन्न हो गए।

इन्हीं वरदानों का फल था कि आगे चलकर वे श्री राम के परम–सेवक और कार्य–सिद्ध करने वाले महा–वीर बने। हनुमान जी के बचपन की एक और महत्वपूर्ण बात यह बताई जाती है – कि वे इतने उच्छृंखल और शक्तिशाली थे कि ऋषि–मुनियों की तपस्या स्थलों पर खेल–खेल में विघ्न उत्पन्न कर देते। बाल भाव में वे कभी सूर्य को, कभी पर्वतों को, कभी आश्रम के पात्रों को खेल–खेल में उठा लेते। ऋषियों ने प्रेम–रूप में, पर व्यवस्था के लिए, उन्हें यह वर–रूप शाप दिया कि वे अपनी अपार शक्ति को स्वयं भूल जाएँ, जब तक कि कोई उन्हें उनके सामर्थ्य की याद न दिलाए। यही कारण है कि जब राम कथा में जामवंत उन्हें स्मरण कराते हैं – “तुम्हें अपनी शक्ति का बोध नहीं” – तब मानो भीतर सुप्त शक्ति जाग उठती है और वे समुद्र–लाँघने को तैयार हो जाते हैं। यह प्रसंग मुख्य रामायण में तो इस रूप में नहीं, पर बाद की राम–भक्ति परंपरा और हनुमान–महिमा–कथाओं में प्रमुख है।

इस प्रकार हनुमान जी का जन्म केवल एक वानर–कुल में हुए बालक की कथा नहीं, बल्कि देव–वरदान, वायु–तत्त्व, शिव–अंश और राम–लीला की पूर्व–तैयारी का अद्भुत संगम है। अंजना की तपस्या, केसरी का बल, वायु का स्पर्श, देवताओं के वरदान और आगे चलकर राम–कथा में उनकी भीमकाय भूमिका – सब मिलकर हनुमान को “केवल एक पात्र” नहीं, बल्कि भक्ति, बल, विनय और सेवा की मूर्त प्रतिमा बनाते हैं।


स्रोत / ग्रंथ–संदर्भ (Reference):

  • वाल्मीकि रामायण – किष्किंधा काण्ड और सुन्दर काण्ड में हनुमान को “मारुत–सुत”, “केसरी–नंदन” आदि रूपों में संबोधित किया गया है, जिससे उनके वायु–पुत्र और केसरी–पुत्र होने का प्रमाण मिलता है।
  • श्रीमद्भागवत महापुराण, नवम स्कन्ध – राम अवतार और वानर–सेना संदर्भ में हनुमान के वायु–संबंध और महावीर रूप का संकेत।
  • शिव पुराण एवं कुछ अन्य पुराणों में अंजना की तपस्या, वायु–देव के द्वारा तेज–स्थापन और हनुमान को शिव–अंशावतार कहने की परंपरा मिलती है (मत–भेद के साथ)।
  • बाल–लीला (सूर्य को फल समझकर पकड़ने जाना, इंद्र का वज्र, वायु का क्रोध, देवताओं के वरदान) का विस्तृत रूप मुख्यतः रामायण–आधारित बाद के पौराणिक ग्रंथों और हनुमान–माहात्म्य ग्रंथों में विस्तार से आया है, जिनकी जड़ मूल रामायण के “मारुत–सुत” और “अज–भय–हर” जैसे विशेषणों में है।

यह दिव्य हनुमान जन्म कथा हमें बताती है कि भक्ति, बल और विनय कैसे एक-साथ मिलकर धर्म-रक्षा का आधार बनते हैं। यदि आप बच्चों, युवाओं या भक्तों को अंजनानंदन हनुमान की लीला सरल भाषा में समझाना चाहते हैं, तो इस लेख को उनके साथ अवश्य साझा करें।

लेखक / Writer

तु ना रिं 🔱

प्रकाशन / Publish By

सनातन संवाद

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