मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म सादगी में सुख ढूँढना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं आपको सनातन धर्म की उस बहुत शांत, गहरी और सच्ची शिक्षा के बारे में बताना चाहता हूँ, जो आज की भागती हुई दुनिया में लगभग खोती जा रही है — सादगी।
सनातन धर्म कभी भी दिखावे का पक्षधर नहीं रहा। हमारे यहाँ बड़ा वही माना गया जो भीतर से सरल हो। कम बोलने वाला, कम चाहने वाला और ज़्यादा संतुष्ट रहने वाला — वही वास्तव में सुखी माना गया।
हमारे ऋषि-मुनि जंगलों में रहते थे, लेकिन उनके पास शांति थी। राजाओं के पास महल थे, लेकिन वे भी संतों के चरणों में बैठते थे। क्योंकि सनातन जानता था — सुख वस्तुओं में नहीं, संतोष में होता है।
आज इंसान के पास घर भी है, पैसा भी है, सुविधाएँ भी हैं — फिर भी मन अशांत है। क्योंकि चाहतें खत्म नहीं होतीं। और सनातन धर्म बहुत सरल बात कहता है — जिस दिन चाहतें काबू में आ जाएँ, उसी दिन जीवन सहज हो जाता है।
हमारे यहाँ साधारण भोजन, साधारण वस्त्र और साधारण जीवन को कभी कमजोरी नहीं माना गया। उसे आत्मबल की पहचान कहा गया। क्योंकि जो कम में भी खुश रह सकता है, वह किसी के आगे झुकता नहीं।
मैं तु ना रिं आपसे यही कहना चाहता हूँ — सनातन धर्म आपको सब कुछ छोड़ने को नहीं कहता, बस इतना कहता है — जितना ज़रूरी हो, उतना ही रखो। बाक़ी बाँट दो, छोड़ दो, या जाने दो।
और जब जीवन हल्का हो जाता है, तो मन अपने आप शांत हो जाता है। यही सादगी है। यही सनातन की असली सुंदरता है।
और इसी कारण मैं पूरे गर्व से कहता हूँ — “हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे सिखाता है कि सच्चा सुख सादगी में छुपा है।”
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