अनुशासन के बिना विश्वगुरु नहीं बनता समाज
आज का हिंदू यह तो चाहता है कि उसका धर्म विश्वगुरु बने, लेकिन स्वयं अनुशासन का शिष्य बनना नहीं चाहता।
हम बड़े-बड़े आदर्श बताते हैं, पर छोटी-छोटी बातों में धर्म भूल जाते हैं। लाइन तोड़ना हो, झूठ बोलना हो, किसी का हक़ मारना हो — तुरंत तर्क मिल जाता है।
हम कहते हैं — “कर्म ही पूजा है”, लेकिन अपने कर्मों की जवाबदेही लेने से बचते हैं।
कड़वी सच्चाई यह है — जिस समाज में नियम सिर्फ़ दूसरों के लिए हों, वह समाज कभी आदर्श नहीं बनता।
सनातन ने कभी उपदेश नहीं बेचे, उसने आचरण सिखाया। उसने कहा — पहले स्वयं पर शासन करो, तभी विश्व का मार्गदर्शन कर सकोगे।
अगर हम खुद नियम नहीं मानेंगे, तो दुनिया हमें क्यों मानेगी?
जय सनातन 🔱
अनुशासन अपनाओ — यही सच्चा नेतृत्व है।
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