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मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे सहिष्णुता का सबसे सुंदर मार्ग दिखाता है

मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे सहिष्णुता का सबसे सुंदर मार्ग दिखाता है

मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे सहिष्णुता का सबसे सुंदर मार्ग दिखाता है

सनातन धर्म सहिष्णुता संदेश — मैं हिन्दू हूँ
मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे सहिष्णुता का सबसे सुंदर मार्ग दिखाता है नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपको उस शक्ति के बारे में बताने आया हूँ, जिसने हजारों सालों से सनातन धर्म को जीवित, मजबूत और अडिग बनाए रखा है — सहिष्णुता, यानी सबको स्वीकार करने की शक्ति। आज की दुनिया में जहां लोग धर्म, भाषा, विचार या रंग के नाम पर लड़ जाते हैं, वहां हमारा सनातन धर्म कहता है— “सब सत्य की ही खोज में हैं, मार्ग अलग हो सकते हैं।” यही कारण है कि हमारे मंदिरों में कभी किसी ने यह नहीं पूछा कि किस जाति के हो, किस भाषा के हो, किस देश के हो। ईश्वर का घर सबके लिए खुला है। सनातन धर्म ने कभी यह नहीं कहा कि सिर्फ मेरा रास्ता सही है, हमने हमेशा कहा— “सर्वे भवन्तु सुखिनः।” यानी सब सुखी हों, केवल हम नहीं, सब। यही कारण है कि भारत ने हमेशा हर धर्म, हर संस्कृति, हर मत को अपनाया। हमारी जमीन पर किसी भी विचारधारा को अपने अस्तित्व के लिए लड़ना नहीं पड़ा— हमने उसे स्वयं जगह दी, सम्मान दिया, और उसे फलने-फूलने दिया। हमारा धर्म बड़ा दिल रखता है। यह किसी को बदलने की कोशिश नहीं करता, यह सिर्फ इतना कहता है— “तुम अपनी राह चलो, मैं अपनी राह चलूँ, पर हम दोनों मिलकर इस दुनिया को बेहतर बनाएं।” इसी सहिष्णुता के कारण सनातन धर्म को न कोई मिटा सका, न क्लांत कर सका। क्योंकि सहिष्णुता कमजोरी नहीं, सबसे बड़ी ताकत है। जो अपने भीतर इतना विशाल स्थान रखता है कि पूरी दुनिया उसमें समा जाए— उसे कोई जीत नहीं सकता। और इसलिए मैं तु ना रिं, पूरे गर्व के साथ कहता हूँ— “मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म प्रेम सिखाता है, घृणा नहीं। स्वीकार करना सिखाता है, विरोध नहीं। और दुनिया को जोड़ना सिखाता है, तोड़ना नहीं।” यही सनातन की आत्मा है। यही सदियों से हमारी पहचान है।

संक्षेप / Highlights

  • सनातन धर्म में सहिष्णुता—सभी मतों, भाषा और संस्कृतियों का सम्मान—इसके मूल भाव हैं।
  • “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “ईश्वर का घर सबके लिए खुला है” जैसे आदर्श सहिष्णुता को दर्शाते हैं।
  • सहिष्णुता कमजोरी नहीं, बल्कि वह ताकत है जो विविधता में एकता कायम करती है।

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FAQ — अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. सनातन धर्म में सहिष्णुता का क्या अर्थ है?

सहिष्णुता का अर्थ है सभी विचारों, धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान करना, और विविधता में सह-अस्तित्व की भावना बनाए रखना।

2. भारत में सहिष्णुता की परंपरा कैसे व्याप्त रही?

भारत की सांस्कृतिक परंपरा ने हमेशा विभिन्न मतों और संस्कृतियों को अपनाया, उन्हें जगह दी और सह-अस्तित्व के सिद्धांत को बढ़ावा दिया।

3. मैं व्यक्तिगत रूप से सहिष्णुता कैसे बढ़ा सकता/सकती हूँ?

दूसरों की बात सुनना, समझना, सम्मान देना, और विविधता को सकारात्मक दृष्टि से देखना—ये छोटे कदम आपकी सहिष्णुता बढ़ा सकते हैं।

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लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱   |   प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद

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इस लेख का सम्पूर्ण कंटेंट लेखक तु ना रिं और सनातन संवाद के कॉपीराइट के अंतर्गत सुरक्षित है। बिना अनुमति इस लेख की नकल, पुनःप्रकाशन या डिजिटल/प्रिंट रूप में उपयोग निषिद्ध है। शैक्षिक और ज्ञानवर्धन हेतु साझा किया जा सकता है, पर स्रोत का उल्लेख आवश्यक है।

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