मैं गर्व से कहता हूँ — मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे संस्कारों की ताकत समझाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं आपको सनातन धर्म की उस शिक्षा के बारे में बताने आया हूँ जो न किताबों में सीमित है, न भाषणों में — वह जीवन में संस्कार बनकर उतरती है।
सनातन धर्म कहता है कि अच्छा इंसान बनने के लिए सिर्फ पढ़ाई नहीं, संस्कार ज़रूरी हैं। संस्कार मतलब — बड़ों का सम्मान करना, छोटों से प्रेम करना, सच बोलना, मेहनत करना, और गलत काम से दूर रहना।
हमारे यहाँ बच्चे को सबसे पहले “नमस्ते” सिखाया जाता है। यह सिर्फ हाथ जोड़ना नहीं, यह सामने वाले के भीतर ईश्वर को पहचानना है। यही छोटा-सा संस्कार मनुष्य को विनम्र बनाता है।
माता-पिता बच्चों को केवल कमाना नहीं सिखाते, बल्कि अच्छा बनना सिखाते हैं। घर ही पहला विद्यालय है, और माँ-बाप पहले गुरु हैं। यही कारण है कि संस्कार परिवार से शुरू होते हैं।
सनातन धर्म जानता है कि अगर संस्कार मजबूत हों, तो व्यक्ति कहीं भी जाए, भटकेगा नहीं। दुनिया बदल जाए, पर उसके भीतर का मूल्य नहीं बदलता।
आज लोग कहते हैं — ज़माना बदल गया है। हाँ, बदला है। पर सनातन धर्म कहता है — ज़माना बदले, संस्कार मत बदलो। क्योंकि संस्कार ही मनुष्य की असली पहचान हैं।
मैं तु ना रिं आपसे यही कहना चाहता हूँ — अगर आप ईमानदार हैं, संयमी हैं, दयालु हैं, और अपने कर्म से किसी को दुख नहीं देते — तो आप सनातन धर्म को सच में जी रहे हैं।
और इसी कारण मैं पूरे गर्व से कहता हूँ — “हाँ, मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि मेरा धर्म मुझे अच्छे संस्कारों से मजबूत बनाता है।”
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