सनातन का समय विज्ञान — कालचक्र और युग
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें उस रहस्य से परिचित कराने आया हूँ जो अक्सर अनदेखा रह जाता है — सनातन का समय विज्ञान और युगों का चक्र।
सनातन धर्म केवल पूजा और कर्मकांड नहीं, यह समय और ब्रह्मांड की गहरी समझ भी देता है। ऋषियों ने देखा कि सृष्टि में हर चीज़ नियम और चक्र में चलती है — दिन और रात, ऋतुएँ, जीवन और मृत्यु, सब कुछ अचूक कालचक्र में बाँधा हुआ है।
सृष्टि के चार प्रमुख युग हैं —
सतयुग — सत्य और धर्म का युग, जब मनुष्य का जीवन सरल और दीर्घकालिक था।
त्रेतायुग — धर्म थोड़े कम, प्रयास और तपस्या बढ़ गई।
द्वापर युग — धर्म और अधर्म में संतुलन बिगड़ा, ज्ञान की आवश्यकता बढ़ी।
कलियुग — अधर्म प्रबल, भक्ति और साधना कठिन, पर संकल्प मजबूत होने पर मोक्ष संभव।
प्रत्येक युग केवल समय का नाम नहीं, यह मानव चेतना और समाज की स्थिति का प्रतीक है। जैसे कलियुग में लोग लोभ, अहंकार और मोह के अधीन हैं, वैसे ही सतयुग में मानव स्वभाव से सत्य और करुणा में निपुण थे।
सनातन में कहा गया है — “काल को जानो, तब धर्म का पालन सही होगा। समय की समझ के बिना साधना अधूरी है।”
ऋषियों ने समय को केवल घड़ी या पंचांग तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने देखा कि मनुष्य का जीवन, समाज और प्रकृति समय के अनुरूप बदलते हैं। इसलिए यज्ञ, व्रत, उत्सव और साधना सब न केवल धार्मिक हैं, बल्कि काल और ऊर्जा के अनुसार वैज्ञानिक रूप से निर्धारित हैं।
सनातन ज्ञान यह सिखाता है कि यदि हम समय और कालचक्र को समझकर अपने कर्म और साधना करें, तो हमारे प्रयास अधिक फलदायक होते हैं। समय का सही उपयोग वास्तव में मानव को ईश्वर के निकट ले जाता है।
इसलिए सनातन धर्म केवल कर्म नहीं, बल्कि काल, चेतना और ब्रह्मांड की समझ भी है।
✍🏻 लेखक: तु ना रिं
🌿 सनातन इतिहास ज्ञान श्रृंखला
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