वेद कैसे पैदा हुए? — ईश्वर द्वारा रचा गया नहीं, सुना गया ज्ञान
सनातन धर्म में वेद किसी लेखक द्वारा लिखी गई पुस्तक नहीं हैं। वेद ईश्वर की वाणी हैं, जिन्हें सुना गया, लिखा नहीं गया। इसीलिए इन्हें कहा जाता है — श्रुति।
जब सृष्टि बनी, तो सबसे पहले शब्द की तरंग उठी —
ओम्
उसी ओम् की तरंगों से वेदों का ज्ञान प्रकट हुआ।
सनातन के अनुसार भगवान ब्रह्मा ध्यान में थे, तभी ब्रह्मांड की सूक्ष्म ध्वनियाँ उनके भीतर उतरने लगीं। वे कोई भाषा नहीं थीं, बल्कि ऊर्जा के मंत्र थे। ब्रह्मा ने उन्हें ऋषियों को दिया।
और जिन ऋषियों ने यह दिव्य ज्ञान प्राप्त किया, वे कहलाए —
मंत्रद्रष्टा ऋषि
मतलब जिन्होंने मंत्रों को देखा और सुना।
इसी कारण वेदों को “अपौरुषेय” कहा जाता है —
अर्थात किसी मनुष्य द्वारा रचित नहीं।
चार वेद हैं —
- ऋग्वेद
- यजुर्वेद
- सामवेद
- अथर्ववेद
ऋग्वेद में देवताओं की स्तुतियाँ हैं।
यजुर्वेद में यज्ञ के विधि-विधान हैं।
सामवेद में संगीत की जड़ें हैं।
अथर्ववेद में जीवन, रोग, ग्रह, चिकित्सा और समाज का ज्ञान है।
सनातन कहता है कि वेद ज्ञान नहीं, विज्ञान हैं।
आज जिसे विज्ञान कहता है —
- ऊर्जा तरंग
- कंपन
- ध्वनि का प्रभाव
- ध्यान की शक्ति
- मंत्रों की तरंग
- ब्रह्मांडीय नियम
वह सब वेदों में हजारों साल पहले लिखा जा चुका था।
वेदों को पहले लिखा नहीं गया था, केवल बोला जाता था।
गुरु शिष्य परंपरा में एक शब्द भी गलत न हो —
इसके लिए अद्भुत स्मृति तकनीक विकसित की गई।
सनातन में ज्ञान को पुस्तक नहीं, जीवित परंपरा कहा गया।
इसलिए वेद कभी नष्ट नहीं हुए, ना ही हो सकते हैं।
आज भी वेदों के मंत्र वैसे ही हैं, जैसे हजारों साल पहले थे।
क्योंकि सत्य बदला नहीं करता।
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: वेद कैसे पैदा हुए, Vedic Knowledge, Sanatan Dharma, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, श्रुति, मंत्रद्रष्टा ऋषि, वेद ज्ञान
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