देव और असुर वास्तव में कौन थे? — कहानी नहीं, मानसिकता का युद्ध
अक्सर लोगों को बताया जाता है कि देव अच्छे थे और असुर बुरे थे। पर सनातन धर्म का सत्य इससे कहीं ज्यादा गहरा है। देव और असुर किसी जाति के नाम नहीं थे, ये मानव की मानसिक अवस्था के नाम थे।
सनातन में “देव” का अर्थ होता है —
उन्नत चेतना वाला मानव
जो धर्म, सत्य, संयम और करुणा के मार्ग पर चलता हो।
और “असुर” का अर्थ होता है —
अहंकार, लोभ और हिंसा से ग्रस्त मानव
जिसमें सत्ता की भूख और अधर्म का वास हो।
देव और असुर एक ही माँ — दिति और अदिति — से उत्पन्न हुए, पर उनकी सोच अलग थी। उसी से उनका मार्ग अलग हुआ।
देवों ने ज्ञान को पूजा,
असुरों ने शक्ति को।
देवों ने यज्ञ किए,
असुरों ने युद्ध।
देवों ने साधना की,
असुरों ने सत्ता की लालसा।
पर ध्यान दीजिए —
हर असुर गलत नहीं था।
प्रह्लाद ज्यादातर असुर कुल में जन्मे, फिर भी महान भक्त थे।
विभीषण रावण के भाई थे, पर धर्म के साथ खड़े रहे।
बाणासुर शिव भक्त था।
महाबली असुर थे, पर धार्मिक और दानी थे।
और हर देव भी निर्दोष नहीं।
कभी अहंकार देवों में भी आया,
तभी उन्हें विष्णु को पुकारना पड़ा।
असली युद्ध तलवार का नहीं था,
विवेक और वासना का था।
सनातन में राक्षस को मारा नहीं जाता,
अहंकार को मारा जाता है।
इसीलिए हर अवतार का उद्देश्य था —
- रावण को नहीं, अहंकार को मारना
- हिरण्यकशिपु को नहीं, अधर्म को मिटाना
- कंस को नहीं, पाप को समाप्त करना
आज भी यही युद्ध चल रहा है।
हर इंसान के अंदर —
एक देव है और एक असुर।
जो जीते,
वही तुम्हारा भाग्य बनाता है।
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: देव और असुर, मानसिकता का युद्ध, सनातन धर्म, अहंकार, धर्म, विवेक, वासना, मानव चेतना
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