मैं गर्व से कहता हूँ— मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि हमारा धर्म हर जीव में भगवान को देखना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपको एक बहुत सरल, लेकिन बहुत गहरी बात समझाना चाहता हूँ – सनातन धर्म क्यों कहता है कि हर जीव में भगवान हैं?
ईश्वर केवल मंदिर में नहीं, हर हृदय में हैं
हमारे सनातन धर्म की सबसे खास बात यह है कि हम भगवान को सिर्फ मंदिर की मूर्ति में नहीं ढूँढते। हम उन्हें –
- अपनी हर साँस में,
- हर इंसान के दिल में,
- हर पशु–पक्षी की आँखों में,
- हर पेड़–पौधे और पूरी प्रकृति में महसूस करते हैं।
दुनिया में कई मत और मार्ग कह सकते हैं कि ईश्वर कहीं आसमान में बैठा है, किसी दूर के लोक में है; लेकिन सनातन धर्म बहुत सरलता से कहता है –
“ईश्वर तुम्हारे भीतर ही बैठा है।”
किसी को दुख देना – अपने ही भीतर के ईश्वर को दुख देना
अगर हर जीव में भगवान है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि –
- जब हम किसी को गाली देते हैं, हम उसके अंदर बैठे ईश्वर को चोट पहुँचाते हैं।
- जब हम किसी के साथ अन्याय करते हैं, हम भगवान की बनाई हुई आत्मा का अपमान करते हैं।
- जब हम किसी बेबस को तुच्छ समझते हैं, हम असल में ईश्वर की रचना को छोटा मान लेते हैं।
वहीं दूसरी ओर –
- जब हम किसी की मदद करते हैं, हम ईश्वर की सेवा कर रहे होते हैं,
- जब हम किसी भूखे को भोजन देते हैं, हम भगवान के घर में भोग लगा रहे होते हैं,
- जब हम किसी उदास चेहरे पर मुस्कान लाते हैं, हम ईश्वर के ही एक स्वरूप को प्रसन्न कर रहे होते हैं।
यही सनातन धर्म की करुणा है – जहाँ पूजा केवल दीया–बाती तक सीमित नहीं, बल्कि जीव–मात्र की सेवा में बदल जाती है।
गाय, वृक्ष और धरती – सिर्फ प्रतीक नहीं, ईश्वर के जीवित रूप
हम गाय को माता कहते हैं, क्योंकि वह केवल एक पशु नहीं, पालन–पोषण और ममता का प्रतीक है। वह हमें दूध देती है, जिसका रूप बदलकर दही, घी, मक्खन, छाछ बनता है और पीढ़ियों को पोषण देता है।
हम वृक्ष को देवता मानते हैं, क्योंकि वे बिना कुछ माँगे –
- हमें ऑक्सीजन देते हैं,
- फल–फूल देते हैं,
- छाया और आश्रय देते हैं,
- और वातावरण को संतुलन में रखते हैं।
हम धरती को माता कहते हैं, क्योंकि यही हमें सहारा देती है, अन्न देती है, घर बनाने की मिट्टी देती है, और चुपचाप हमारे हर व्यवहार को सहती रहती है।
ये सब बातें अंधविश्वास नहीं, बल्कि कृतज्ञता की भाषा हैं – जो हमें हर रोज़ यह याद दिलाती हैं कि हम अकेले नहीं हैं, हम एक विशाल, जीवित, ईश्वर–सहित सृष्टि का हिस्सा हैं।
दुनिया सिर्फ मनुष्यों के लिए नहीं बनी
सनातन धर्म कभी नहीं कहता कि दुनिया केवल मनुष्यों के लिए बनाई गई है। यह स्पष्ट कहता है कि –
- हर जीव – चाहे छोटा हो या बड़ा,
- नजर आए या आँखों से अदृश्य,
- जंगल में रहता हो या घर के आँगन में…
सब ईश्वर की रचना हैं, सबमें चेतना की चिंगारी है, सबका अपना महत्व है।
इसलिए उन्हें प्यार, सम्मान और सुरक्षा देना ही हमारा वास्तविक धर्म है। यदि हम केवल मनुष्य–केंद्रित होकर सोचें, तो हम प्रकृति का अत्यधिक दोहन करते हैं; लेकिन जब हम हर जीव में ईश्वर को देखने लगते हैं, तो हम संरक्षण, संतुलन और संवेदना की भाषा सीख जाते हैं।
आपके छोटे–छोटे कर्म ही ईश्वर की सच्ची सेवा हैं
मैं, तु ना रिं, आज आपको केवल इतना महसूस कराना चाहता हूँ कि –
- जब आप किसी को मुस्कुराते हुए देखते हैं और उसकी खुशी में सच्चे दिल से खुश होते हैं,
- जब आप किसी भूखे को खाना देते हैं,
- जब आप किसी जानवर को पानी पिलाते या उसके साथ क्रूरता के बजाय दया का व्यवहार करते हैं,
- जब आप एक पेड़ को बचाते हैं, या एक नया पौधा लगाते हैं…
तो आप केवल अच्छा काम नहीं कर रहे होते, आप भगवान की सेवा कर रहे होते हैं।
क्योंकि भगवान हमारे हाथों से, हमारे कर्मों से, हमारे दिल की संवेदना से ही इस दुनिया में कार्य करते हैं। हमारे अच्छे कर्म ही ईश्वर के हाथ बन जाते हैं।
यही तो सनातन है – भगवान दूर नहीं, हमारे कर्मों में हैं
यही सनातन का मूल संदेश है –
भगवान कहीं दूर, सात आसमान के पार नहीं बैठे; वे तो –
- हमारे हर अच्छे विचार में,
- हर करुणा–भरी नजर में,
- हर मदद के लिए बढ़ते हुए हाथ में,
- और हर जीव के लिए उठती हुई सच्ची प्रार्थना में हैं।
यही कारण है कि मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ –
“हाँ, मैं हिन्दू हूँ और मेरा धर्म मुझे हर जीव में भगवान देखने की शक्ति देता है।”
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: God in Every Living Being, हर जीव में भगवान, Sanatan Dharma Compassion, Hinduism and Animals, Gau Mata, Nature Worship, Proud to be Hindu, Sanatan Sanvad
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