मैं गर्व से कहता हूँ – मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि हमारा धर्म जीवन को सरल और सुंदर बनाना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक साधारण सा सनातनी। आज मैं बहुत सरल शब्दों में आपके साथ यह बात बाँटना चाहता हूँ कि हमारे सनातन धर्म की खूबसूरती क्या है, और क्यों मैं पूरे विश्वास के साथ, पूरे प्रेम के साथ दुनिया से कहता हूँ – “हाँ, मैं हिन्दू हूँ और मुझे इस पर गर्व है।”
धर्म का असली अर्थ – सिर्फ पूजा नहीं, पूरा जीवन
अक्सर जब हम “धर्म” शब्द सुनते हैं, तो लोगों के मन में सबसे पहले पूजा–पाठ, मंदिर, मंत्र, जप, आरती जैसी बातें आती हैं। लोग सोचते हैं कि धर्म मतलब केवल धार्मिक रस्में, व्रत–उपवास और त्योहार हैं।
लेकिन सनातन दृष्टि से धर्म का अर्थ इससे बहुत बड़ा है। धर्म का मतलब है –
- अच्छाई करना और सच्चाई पर टिके रहना,
- किसी को दुख न देना, चाहे शब्द से हो या कर्म से,
- अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाना,
- प्रकृति, पशु–पक्षी और धरती का सम्मान करना,
- और जहाँ तक संभव हो, जरूरतमंद की मदद करना।
यही सब मिलकर सनातन धर्म की आत्मा बनाते हैं। पूजा–पाठ तो इस आत्मा को जागृत रखने के साधन हैं, लक्ष्य नहीं।
सनातन धर्म – जो किसी पर खुद को थोपता नहीं
हमारा धर्म किसी पर अपने नियम नहीं थोपता। यह नहीं कहता कि “बस मेरी बात मानो, बाकी सब गलत है।” बल्कि सनातन धर्म बहुत सहजता से कहता है –
“तुम जैसा जीवन चाहो, वैसा जियो… बस किसी को कष्ट मत दो।”
इसीलिए सनातन धर्म दुनिया के सबसे पुराने मार्गों में होने के बावजूद आज भी उतना ही जीवंत है। यह समय के साथ बदलते संसार को समझता है, लेकिन अपने मूल मूल्य – सच्चाई, करुणा, सहिष्णुता और प्रेम – कभी नहीं बदलता।
हम सूर्य, माता–पिता और प्रकृति को क्यों प्रणाम करते हैं?
हम रोज सुबह सूर्य को प्रणाम करते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि सूर्य केवल एक ग्रह नहीं, बल्कि जीवन देने वाली शक्ति है – प्रकाश भी, ऊर्जा भी, लय भी।
हम माँ–पिता और गुरुओं का सम्मान करते हैं, क्योंकि वही हमें दिशा दिखाते हैं, चलना सिखाते हैं, गिरने पर उठाते हैं। शास्त्रों में माता–पिता को ही पहला देवता कहा गया है।
हम प्रकृति को देवी मानते हैं, क्योंकि –
- पृथ्वी हमें अन्न देती है,
- जल हमें जीवन देता है,
- वायु हमें श्वास देती है,
- अग्नि हमें ऊष्मा और शक्ति देती है,
- आकाश हमें स्थान और विस्तार देता है।
जो हमें इतना सब दे रहा है, उसे हम देवता और देवी के रूप में सम्मान दें, यह कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि कृतज्ञता की भावना है। यही सनातन का सरल विज्ञान है।
सनातन धर्म किताबों में नहीं, हमारी साँसों में बसता है
सनातन धर्म की असली सीख किसी एक ग्रंथ में बंद नहीं है। यह हमारी साँसों में है, हमारे व्यवहार में है, हमारी सोच में है, हमारे घर–परिवार की परंपराओं में है, हमारी रोज़मर्रा की छोटी–छोटी आदतों में है।
जब हम –
- बुज़ुर्गों का आदर करते हैं,
- बिना मतलब किसी को चोट पहुँचाने वाले शब्द नहीं बोलते,
- घर में आया अन्न बाँटकर खाते हैं,
- पेड़–पौधों को काटने से पहले सौ बार सोचते हैं,
- और किसी की मजबूरी देखकर कठोर नहीं, बल्कि दयालु बनते हैं…
तभी हम चुपचाप, बिना घोषणा के भी सनातन को जी रहे होते हैं। किसी को बताए बिना भी, हमारा जीवन खुद एक संदेश बन जाता है।
आपसे बड़ा सनातनी कोई नहीं, यदि…
मैं आपको सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ – अगर आप:
- सच्चाई से जीते हैं,
- किसी का बुरा नहीं करते, न सोच में, न कर्म में,
- अपने माता–पिता और गुरुओं का सम्मान करते हैं,
- प्रकृति का आदर करते हैं, उसे बिना कारण नुकसान नहीं पहुँचाते,
- और जहाँ संभव हो, जरूरतमंद की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं…
तो सच मानिए, आपसे बड़ा सनातनी कोई नहीं – चाहे आप कितनी ही साधारण जिंदगी क्यों न जी रहे हों। सनातन धर्म के लिए कोई ड्रेस–कोड, कोई विशेष भाषा, कोई विशेष स्थान आवश्यक नहीं; ईमानदार हृदय ही पर्याप्त है।
क्यों मैं गर्व से कहता हूँ – “हाँ, मैं हिन्दू हूँ”
मैं गर्व से कहता हूँ कि मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि –
- मेरा धर्म मुझे सोचने की आज़ादी देता है,
- किसी पर अपने विचार थोपने के बजाय सम्मान से संवाद करना सिखाता है,
- हर मत, हर मार्ग में कहीं न कहीं ईश्वर की झलक देखने की विस्तृत दृष्टि देता है,
- और सबसे बढ़कर, जीवन को सरल, सुंदर और संतुलित बनाने की प्रेरणा देता है।
यही सनातन है। यही हिन्दू धर्म है।
और यही कारण है कि मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ –
“हाँ, मैं हिन्दू हूँ और मुझे इस पर गर्व है।”
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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