मैं गर्व से कहता हूँ— मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि हमारा धर्म ज्ञान को ही सर्वोच्च मानता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपको एक बहुत आसान और महत्वपूर्ण बात बताना चाहता हूँ— सनातन धर्म में ज्ञान को सबसे बड़ा क्यों कहा गया है?
ज्ञान ही वह रोशनी है जो अंधकार मिटाती है
हमारे सनातन धर्म ने हमेशा यह सिखाया है कि ज्ञान ही वह प्रकाश है जो अज्ञान के अंधकार को समाप्त करता है। यहाँ भगवान भी तभी पूजनीय माने गए, जब उन्होंने संसार को ज्ञान दिया—
- श्रीकृष्ण ने गीता का दिव्य ज्ञान दिया,
- भगवान शिव ने योग, तप और ध्यान का मार्ग दिखाया,
- माँ सरस्वती बुद्धि, विद्या और कला की अधिष्ठात्री मानी गईं।
अर्थ स्पष्ट है— जहाँ ज्ञान है, वहीं ईश्वर की सच्ची अनुभूति है।
वेद, उपनिषद और गीता – केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, ज्ञान के भंडार
हमारे यहाँ जो ग्रंथ हैं, वे केवल पूजा–पाठ के लिए नहीं लिखे गए।
- वेद – ध्वनि, मंत्र, प्रकृति, यज्ञ, समाज और धर्म के मूल सिद्धांतों का ज्ञान।
- उपनिषद – “मैं कौन हूँ?”, “ईश्वर क्या है?”, “जीवन और मृत्यु के पार क्या है?” जैसे गहरे प्रश्नों का उत्तर।
- भगवद् गीता – कर्म, भक्ति, ज्ञान, योग, कर्तव्य, मन–नियंत्रण और जीवन–कला की पूर्ण पाठशाला।
इसीलिए कहा जाता है कि सनातन धर्म केवल ‘रीति–रिवाज’ नहीं, बल्कि ‘ज्ञान–दर्शन’ है।
ऋषि परंपरा: जंगलों में जन्मा ज्ञान
हमारे ऋषि–मुनि किसी महंगे प्रयोगशाला में नहीं बैठे थे। वे वनों, पर्वतों और आश्रमों में रहकर साधना और चिंतन के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करते थे। उन्होंने –
- तारों और ग्रहों की गति पर विचार किया,
- औषधियों और वनस्पतियों के गुण खोजे,
- मानव–शरीर, मन और आत्मा की गहराई को समझा,
- प्रकृति के नियमों और ब्रह्मांड के रहस्यों पर चिंतन किया।
उन्होंने यह समझाया कि बिना ज्ञान के भक्ति भी अधूरी है। केवल आँखें बंद करके प्रार्थना करना काफी नहीं, समझ के साथ ईश्वर को स्वीकार करना ही वास्तविक अध्यात्म है।
गुरु – अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाला प्रकाश
सनातन धर्म में गुरु को भगवान से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। इसका अर्थ यह नहीं कि गुरु ईश्वर से अलग कोई सत्ता हैं, बल्कि यह कि गुरु ईश्वर तक पहुँचने का सजीव माध्यम हैं।
इसीलिए कहा गया –
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः।”
अर्थ यह कि –
- गुरु हमें नए जीवन–दृष्टिकोण का सृजन देते हैं (ब्रह्मा),
- ज्ञान का पालन करना सिखाते हैं (विष्णु),
- और हमारे भीतर के अज्ञान और अहंकार का संहार करते हैं (महेश्वर)।
गुरु वही जो प्रश्नों से भागने को नहीं, पूछने को प्रेरित करे।
जन्म से नहीं, ज्ञान से बनती है महानता
सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण संदेश यह भी है कि –
इस धर्म में जन्म से कोई बड़ा नहीं, ज्ञान से बड़ा बनता है।
हमारी परंपरा में –
- ऋषि–मुनि राजाओं से अधिक आदरणीय माने गए,
- अर्जुन जैसे योद्धा भी अपने सामने श्रीकृष्ण को गुरु मानकर ज्ञान सुनते हैं,
- जनक जैसे राजा भी विदेह बनकर ज्ञान की शरण लेते हैं।
अर्थात जो सीखने को तैयार है, वही आगे बढ़ता है। अहंकार हमें गिराता है, ज्ञान हमें उठाता है।
आज के समय में ज्ञान–परंपरा को कैसे जिएँ?
आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में भी हम सनातन की ज्ञान–परंपरा को अपने जीवन में सरल तरीकों से जी सकते हैं –
- अच्छे ग्रंथों को पढ़ें – गीता, उपनिषदों की कथाएँ, संतों के जीवन–वृत्तांत।
- गलतियों से डरने के बजाय उनसे सीखें।
- सवाल पूछने से न हिचकें – “यह क्यों?”, “कैसे?”, “क्या यह सच है?”
- सही–गलत को समझकर, सही के पक्ष में खड़े हों।
- बच्चों को डर से नहीं, ज्ञान और समझ से धर्म सिखाएँ।
जब हम सोच–समझकर निर्णय लेते हैं, परंपरा को समझकर अपनाते हैं और अनुकरण नहीं, समझ के साथ अनुसरण करते हैं, तो हम वास्तव में सनातन धर्म के ज्ञान–स्वरूप को जी रहे होते हैं।
मेरा गर्व: मेरा धर्म मुझे जीवनभर सीखने की प्रेरणा देता है
मैं, तु ना रिं, आपसे बस इतना कहना चाहता हूँ –
- अगर आप सीखते रहते हैं,
- गलतियों से सबक लेते हैं,
- सही को पहचानकर अपनाते हैं,
- और गलत को छोड़ने का साहस रखते हैं –
तो आप वही कर रहे हैं जो सनातन धर्म हमें सिखाता है।
यही कारण है कि मैं पूरे विश्वास से कहता हूँ –
“हाँ, मैं हिन्दू हूँ, और मेरा धर्म मुझे जीवनभर सीखने की प्रेरणा देता है।”
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: Hinduism knowledge is supreme, Sanatan Dharma knowledge, सनातन धर्म में ज्ञान, वेद उपनिषद गीता, गुरु का महत्व, Hindu philosophy, Sanatan Sanvad
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