मैं गर्व से कहता हूँ— मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि हमारा धर्म किसी पर भी ज़बरदस्ती नहीं करता
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपसे बहुत सीधी और दिल से निकली बात करना चाहता हूँ— मैं हिन्दू होने पर गर्व क्यों करता हूँ? क्योंकि मेरा धर्म मुझे सिखाता है कि किसी के विश्वास पर कभी ज़बरदस्ती मत करो।
सनातन धर्म: हर आत्मा को अपनी राह चुनने की आज़ादी
सनातन धर्म कहता है कि हर इंसान को अपने रास्ते से ईश्वर तक जाने की पूरी आज़ादी है। कोई चाहे तो –
- राम को माने,
- शिव को माने,
- कृष्ण को माने,
- देवी को माने,
- या फिर बिना मूर्ति के भी ईश्वर को याद करे –
सब स्वीकार है। हमारे यहाँ यह नहीं कहा जाता कि “सिर्फ यही रास्ता सही, बाकी सब गलत।” बल्कि सनातन धर्म सिखाता है कि सभी रास्ते उसी एक सत्य की ओर जाते हैं, बस तरीक़े अलग-अलग हैं।
हिन्दू धर्म: न तलवार, न डर – केवल प्रेम और समझ
हमारे धर्म में धर्म–परिवर्तन के लिए न लालच है, न डर, न धमकी। न कोई तलवार, न कोई “मानो नहीं तो सज़ा” वाला भय।
यहाँ तो बात इतनी सरल है –
- तुम्हें जप अच्छा लगे तो जप करो,
- ध्यान अच्छा लगे तो ध्यान करो,
- सेवा में आनंद मिले तो सेवा करो,
- बस “ॐ” कहकर भी ईश्वर को याद करना चाहो, तो वही कर लो।
भगवान तुमसे तुम्हारी भाषा में, तुम्हारी भावना में, तुम्हारी सुविधा से मिलेंगे – यही सनातन की सबसे बड़ी खूबसूरती है।
सनातन धर्म बहस से नहीं, समझ से चलता है
मैं, तु ना रिं, यह बात साफ़ कहना चाहता हूँ कि सनातन धर्म बहस से ज़्यादा समझ पर चलता है।
- किसी को मजबूर करके मंदिर लाने की परंपरा नहीं,
- बल्कि प्रेम से सत्य समझाने की परंपरा है।
अगर कोई हमारे धर्म के बारे में गलत समझता है, तो हमारा काम उसे गाली देना नहीं, बल्कि –
- शांत मन से बात करना,
- उसे समझाना,
- उसे खुद सोचने और परखने का मौका देना है।
क्योंकि सनातन जानता है –
“जो समझकर अपनाया जाता है, वही स्थायी होता है; जो डर से अपनाया जाता है, वह सिर्फ नाम का धर्म होता है, मन का नहीं।”
हर आत्मा अपनी यात्रा पर है – और यही है सनातन की विनम्रता
हमारे शास्त्र कहते हैं कि हर आत्मा अपनी–अपनी यात्रा पर है।
- किसी की सोच अभी शुरुआती है,
- किसी की बहुत गहरी है,
- किसी की बीच के रास्ते पर है –
इसलिए सनातन किसी की निंदा नहीं करता कि “तुम ऐसा क्यों मानते हो?” बल्कि कहता है –
“तुम अपने मार्ग पर चलो, मैं अपने मार्ग पर चलूँगा, पर हम एक–दूसरे का सम्मान ज़रूर करेंगे।”
यही तो “वसुधैव कुटुम्बकम्” का असली अर्थ है –
पूरी पृथ्वी परिवार है, और परिवार में मतभेद हो सकते हैं, पर टूटन नहीं होनी चाहिए।
आज की दुनिया को सनातन की इस सोच की सबसे ज़्यादा आवश्यकता है
आज दुनिया में कई जगह –
- धर्म के नाम पर लड़ाइयाँ हो रही हैं,
- लोग एक–दूसरे को गलत साबित करने में लगे हैं,
- नफ़रत, विभाजन और कटुता फैल रही है।
ऐसे समय में सनातन धर्म की यह आवाज़ और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाती है –
“धर्म बाँटने के लिए नहीं, जोड़ने के लिए है।”
अगर –
- तुम्हारा रास्ता तुम्हें अच्छा इंसान बनाता है,
- तुम्हारे भीतर प्रेम, दया और सत्य को बढ़ाता है,
- तुम्हें दूसरों का सम्मान करना सिखाता है –
तो वह रास्ता भी सम्मान के योग्य है। सनातन धर्म –
- किसी का अपमान नहीं करता,
- न ही किसी से अपना रास्ता जबरदस्ती मनवाता है।
यह विनम्रता ही सनातन को महान बनाती है।
मेरा गर्व: मेरा धर्म स्वतंत्रता देता है, दबाव नहीं
इसलिए मैं पूरे विश्वास से, बिना किसी डर, घमंड या नफ़रत के कहता हूँ –
“हाँ, मैं हिन्दू हूँ, और मुझे गर्व है कि मेरा धर्म किसी पर दबाव नहीं डालता, बल्कि हर आत्मा को अपनी सच्चाई खोजने की आज़ादी देता है।”
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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