मैं गर्व से कहता हूँ— मैं हिन्दू हूँ, क्योंकि हमारा धर्म प्रकृति को माता मानकर चलना सिखाता है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी। आज मैं आपको एक बहुत सरल और ज़रूरी बात बताना चाहता हूँ— सनातन धर्म क्यों प्रकृति को “माता” मानता है?
सनातन दृष्टि: प्रकृति केवल संसाधन नहीं, माता है
हम सब जानते हैं कि बिना हवा, पानी, पेड़ और धरती के जीवन एक पल भी नहीं चल सकता। लेकिन सनातन धर्म ने यह बात केवल समझी ही नहीं, उसे जीवन–दर्शन बना लिया।
इसीलिए हमारे यहाँ –
- धरती — माता
- गंगा — माता
- वृक्ष — देवता
- गाय — धरा का आशीर्वाद
- सूर्य — जीवनदाता
ये केवल आदर के शब्द नहीं, बल्कि एक जीवित स्मरण हैं कि – “जिससे जीवन मिलता है, उसे कभी चोट मत पहुँचाओ।”
कल्पवृक्ष से धरा–माता तक – प्रतीक में छिपा संदेश
जब हम पेड़ को “कल्पवृक्ष” कहते हैं, तो यह कोई कल्पना मात्र नहीं है, बल्कि एक संदेश है कि –
- पेड़ छाया देते हैं,
- फल–फूल देते हैं,
- प्राणवायु (ऑक्सीजन) देते हैं,
- और बदले में हमसे कुछ नहीं माँगते।
ऐसे वृक्षों को देवता कहकर पुकारने का मतलब है –
- उनके प्रति कृतज्ञ होना,
- उन्हें काटने से पहले हज़ार बार सोचना,
- और उनकी रक्षा करना अपनी आध्यात्मिक जिम्मेदारी समझना।
धरती को हम “धरा–माता” कहते हैं, क्योंकि –
- वह हमारा भार सहती है,
- हमारी गलतियों को चुपचाप झेलती है,
- और फिर भी हमें अन्न, पानी, खनिज और आश्रय देती रहती है।
त्योहार और प्रकृति – सनातन का गहरा पर्यावरण–दर्शन
हमारे त्योहार भी केवल उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का आध्यात्मिक माध्यम हैं –
- दीवाली में दीपक – अंधकार के बीच प्रकाश, ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक।
- होली में ऋतु परिवर्तन – सर्दी से गर्मी की ओर प्राकृतिक परिवर्तन को हँसी और रंगों के साथ स्वीकार करना।
- मकर संक्रांति में सूर्य की दिशा – उत्तरायण का शुभ काल, सूर्य–ऊर्जा का स्वागत।
- नवरात्रि में धरती की ऊर्जा – देवी की साधना के साथ प्रकृति की ऊर्जाओं का संतुलन।
हर उत्सव हमें याद दिलाता है कि – प्रकृति के साथ तालमेल में रहोगे, तो जीवन संतुलित रहेगा।
आज की दुनिया में सनातन का संदेश और भी ज़रूरी
आज आधुनिक समय में –
- पेड़ तेज़ी से कट रहे हैं,
- नदियाँ प्रदूषित हो रही हैं,
- हवा ज़हरीली होती जा रही है,
- जानवर अपना घर खो रहे हैं।
ऐसे समय में सनातन धर्म की यह प्रकृति–माता वाली सोच केवल धार्मिक बात नहीं, मानवता की ज़रूरत बन गई है।
यदि हम सच में सनातनी हैं, तो हमें –
- पेड़ बचाने होंगे,
- जल स्रोतों को साफ रखना होगा,
- प्लास्टिक और कूड़ा नदियों–झीलों में फेंकने से रोकना होगा,
- पशु–पक्षियों के लिए भी जगह छोड़नी होगी।
प्रकृति की रक्षा – पूजा से भी बड़ा पुण्य
मैं, तु ना रिं, आपसे सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ –
- अगर हम एक–एक पेड़ बचाएँ,
- ज़रूरतमंद पक्षियों को पानी दें,
- जानवरों को सहारा दें,
- कूड़ा नदियों और नालों में न डालें,
तो यह केवल प्रकृति की रक्षा नहीं है, यह पूजा है।
क्योंकि सनातन धर्म में –
भगवान सिर्फ मंदिर में नहीं, हवा में, पानी में, सूरज में, धरती की हर धड़कन में बसे हैं।
मैं गर्व से कहता हूँ – मेरा धर्म प्रकृति को ईश्वर का रूप मानता है
जब मैं अपने सनातन धर्म को देखता हूँ, तो मुझे उसमें –
- प्रकृति के प्रति गहरा सम्मान,
- हर जीव के प्रति करुणा,
- और धरती को माँ मानने की विनम्रता दिखाई देती है।
और यही कारण है कि मैं पूरे हृदय से कहता हूँ –
“हाँ, मैं हिन्दू हूँ, और मेरा धर्म प्रकृति को ईश्वर का रूप मानता है।”
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: Hinduism Nature is Mother, Sanatan Dharma Ecology, प्रकृति माता, पर्यावरण और सनातन धर्म, Hindu environmentalism, Dharti Mata, Ganga Mata, Vriksha Devata, Sanatan Sanvad
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