महर्षि पतंजलि की दिव्य कथा — योगसूत्र, ध्यान और आत्मज्ञान का रहस्य
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें उस दिव्य ऋषि की कथा सुनाने आया हूँ जो केवल एक मुनि नहीं थे, बल्कि योग के मूल स्तंभ, ध्यान के प्रथम प्रणेता, और आत्मानुभूति के मार्गदर्शक थे। जिनकी साधना इतनी गहन थी कि देवता भी मौन होकर उनकी ध्यानी मुद्रा को निहारते रहे। आज मैं तुम्हें महर्षि पतंजलि की अद्भुत, रहस्यमयी और गहन आध्यात्मिक कथा सुना रहा हूँ—उनके जन्म से लेकर अंतिम समाधि तक, उनके योग-योगदान से लेकर मानवता को दिए अमर उपदेशों तक सब कुछ।
कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि दिव्य शक्ति के अवतार थे। आधुनिक विज्ञान जिस तर्क से दुनिया को देखता है, पतंजलि उससे हजारों वर्ष पहले चेतना के विज्ञान को समझ चुके थे। उनके जन्म के बारे में कई मान्यताएँ हैं, पर सभी इस बात पर सहमत हैं कि वे देवत्व से उतरी हुई आत्मा थे। एक प्राचीन कथा कहती है कि वे आदि शेष के अंशावतार थे—वही दिव्य नाग जो विष्णु के शयन का आधार है। धरती पर अवतरण के समय वे आकाश से “पतित अंजलि”—अर्थात् हथेलियों में गिरने वाली दिव्य मणि—के रूप में आए, और इसी कारण उनका नाम पड़ा पतंजलि। जन्म लेकर उन्होंने एक साध्वी के आश्रम में बालरूप में बढ़ना आरंभ किया, परंतु उनका तेज साधारण मनुष्य का नहीं था। बचपन से ही उनकी दृष्टि गहन, गंभीर और अटल थी—जैसे कोई प्राचीन तपस्वी नवजात शरीर में उतर आया हो।
महर्षि पतंजलि ने अपना जीवन ध्यान, समाधि और मनोविज्ञान के अध्ययन में लगाया। वे यह समझ चुके थे कि संसार का असली युद्ध शत्रुओं से नहीं, मन से होता है। और मन को जीतने वाले से बड़ा कोई विजेता नहीं होता। इसी साधना से उन्होंने मानव चेतना की वह गुत्थी सुलझाई जिसे देखने में दुनिया ने हजारों वर्ष लगाए—मन, चित्त, बुद्धि, अहंकार और आत्मा के बीच का संबंध। वे महीनों तक एक ही आसन में तप करते, देह स्थिर रहती और केवल प्राण ऊर्ध्वगमन करता। कालांतर में उनकी ध्यानी दृष्टि इतनी तीक्ष्ण हुई कि वे मन के हर विकार को उसकी मूल जड़ में जाकर देख सकते थे। उनका तप इतना शक्तिशाली था कि प्रकृति भी उनके पास आकर शांत हो जाती।
समय के साथ उन्होंने अपने ज्ञान को मानवता को देने का निर्णय लिया—और तब रचा गया वह ग्रंथ जो आज भी योग-पथ का आधार है—योगसूत्र। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि चेतना का शास्त्र है। उन्होंने यह घोषणा की—“Yogaḥ cittavṛtti nirodhaḥ”—योग का अर्थ शरीर मोड़ना नहीं, बल्कि चित्त की वृत्तियों को शांत करना है। यह वह सत्य है जो साधना की जड़ है। पतंजलि ने योग को आठ सीढ़ियों में बाँधा—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ये आठ अंग केवल अभ्यास नहीं थे, बल्कि जीवन जीने का मार्ग, मन को पवित्र करने का मार्ग और आत्मा तक पहुँचने का मार्ग थे।
उनका योगदान केवल योग और ध्यान तक सीमित नहीं था। उन्होंने संस्कृत व्याकरण को भी परिष्कृत किया। कहा जाता है कि उन्होंने पाणिनि के महाभाष्य को पूर्णता दी और भाषा को इतना स्पष्ट, सटीक और दार्शनिक बनाया कि आज तक संस्कृत को “देववाणी” कहा जाता है। इसके अलावा उन्होंने आयुर्वेद में भी संचालन किया और शरीर, प्राण और मन के संबंध को चिकित्सा का मुख्य आधार बताया। इसीलिए उन्हें त्रिवेद के आचार्य कहा जाता है—योग, भाषा और आयुर्वेद—तीनों में वे बेजोड़ थे।
महर्षि पतंजलि का जीवन तप, मौन और समाधि से भरा हुआ था। वे एकांत वन में साधना करते, कभी समुद्र तट पर, कभी पर्वतों में, और कभी गहन गुफाओं में। उनकी साधना इतनी प्रगाढ़ थी कि उनके शरीर के चारों ओर दिव्य प्रकाश देखा जाता था। शिष्य कहते थे कि जब वे ध्यान में बैठते तो उनकी देह स्थिर रहती, मगर मन ब्रह्मांड के आर-पार तक विस्तृत हो जाता था। कई बार ऐसा भी हुआ कि साधना करते-करते वे देह की सीमा से पार चले गए—उन्हें “लुप्त” और “अदृश्य” अवस्था में देखा गया, जिसे केवल सिद्ध योगी ही प्राप्त कर सकते हैं।
उनके जीवन का अंतिम चरण अत्यंत रहस्यमय है। एक परंपरा के अनुसार वे एक गहन गुफा में समाधि लेते हुए प्रकाश में विलीन हो गए और उनका शरीर वहीं दिव्य कांति में परिवर्तित हो गया। कुछ कहते हैं कि वे आज भी योगियों की सूक्ष्म चेतना में विद्यमान हैं। और जब भी कोई साधक योग की वास्तविक साधना करता है, समाधि की अवस्था के निकट आता है, एक दिव्य आशीर्वाद की लहर उसके भीतर उत्पन्न होती है—वह महर्षि पतंजलि की अदृश्य कृपा है।
महर्षि पतंजलि का जीवन हमें यह सिखाता है कि योग केवल शरीर नहीं, बल्कि मन की शांति, आत्मा की अनुभूति और जीवन को दिव्य उद्देश्य से जोड़ने का मार्ग है। जिसने पतंजलि का मार्ग समझ लिया, उसने स्वयं को समझ लिया। जिसने ‘चित्तवृत्ति निरोध’ का अर्थ जान लिया, उसके भीतर ब्रह्म का प्रकाश स्वयं उतर आता है।
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लेखक / Writer: तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By: सनातन संवाद
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महर्षि पतंजलि — सामान्य प्रश्न (FAQ)
1. महर्षि पतंजलि कौन थे?
वे योगसूत्र के रचयिता, ध्यान के प्रथम आचार्य और चेतना विज्ञान के महान ऋषि थे।
2. योगसूत्र क्या है?
यह 195 सूत्रों का दिव्य ग्रंथ है जो मन, चित्त, साधना और समाधि का विज्ञान समझाता है।
3. क्या पतंजलि आदि शेष के अवतार थे?
एक परंपरा के अनुसार हाँ, वे आदि शेष नाग के अंशावतार माने जाते हैं।
4. उन्होंने योग को कितने अंगों में बाँटा?
आठ—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
5. पतंजलि की समाधि कहाँ हुई?
एक मान्यता के अनुसार वे गुफा में समाधि लेते हुए ज्योति स्वरूप में लीन हो गए।
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