चक्र विद्या — मानव शरीर के भीतर छिपे सात सूर्य
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें वह ज्ञान सुना रहा हूँ जो ऋषियों ने हजारों वर्षों पहले खोजा — चक्र विद्या, यानि मनुष्य के भीतर मौजूद वे सात ऊर्जा-केंद्र जो पूरे शरीर, मन और चेतना को नियंत्रित करते हैं।
सनातन धर्म कहता है — मानव केवल हड्डियों और रक्त का ढांचा नहीं, वह एक चलता-फिरता ऊर्जा-क्षेत्र है। और इस ऊर्जा की धुरी होते हैं चक्र।
चक्र क्या हैं? यह शरीर में घूमने वाले ऊर्जा-भंवर हैं। जब ये संतुलित होते हैं, तो जीवन शांति, स्वास्थ्य और सौभाग्य से भर जाता है। जब ये अवरुद्ध होते हैं, तो जीवन में भय, भ्रम, क्रोध, रोग और असफलताएँ आने लगती हैं।
ऋषियों ने बताया कि मनुष्य के भीतर सात मुख्य चक्र हैं — मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। ये सातों चक्र किसी मशीन के सात पहियों की तरह हैं जो हमारे जीवन की पूरी दिशा तय करते हैं।
मूलाधार हमें स्थिरता देता है, स्वाधिष्ठान रचनात्मकता, मणिपुर शक्ति और आत्मविश्वास, अनाहत प्रेम और करुणा, विशुद्धि वाणी की शक्ति, आज्ञा ज्ञान और अंतर्ज्ञान, और सहस्रार — ईश्वर से सीधा संबंध।
जब मनुष्य साधना, ध्यान या मंत्र-उच्चारण करता है, तो इन चक्रों पर संचित नकारात्मक ऊर्जा धीरे-धीरे पिघलने लगती है। और जब कोई चक्र खुलता है, तो उसके साथ जीवन भी खुलने लगता है।
सनातन में कहा गया है — “जिसके चक्र संतुलित हैं, उसका भाग्य कोई नहीं रोक सकता।”
यह विद्या केवल शरीर की नहीं, आत्मा की भी है। क्योंकि चक्र खुलने का अर्थ है — मानव का अपने वास्तविक स्वरूप से मिलना।
चक्र विद्या सिखाती है कि ईश्वर बाहर नहीं, वह हमारे भीतर बैठा है। बस उसके द्वार तक पहुँचने का मार्ग इन्हीं सात चक्रों से होकर जाता है।
और यही कारण है कि योग, प्राणायाम और ध्यान सनातन धर्म की आत्मा कहे जाते हैं।
- चक्र विद्या सात ऊर्जा-केंद्रों (मूलाधार से सहस्रार) के माध्यम से शरीर-मन-आत्मा को जोड़ती है।
- चक्रों का संतुलन स्वास्थ्य, मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है।
- योग, प्राणायाम और ध्यान के द्वारा चक्रों को संतुलित किया जा सकता है।
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FAQ — अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. चक्र क्या होते हैं और उनकी संख्या कितनी है?
परंपरागत रूप से सात प्रमुख चक्रों का वर्णन मिलता है — मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। ये शरीर-मन-आत्मा के ऊर्जा केंद्र हैं।
2. चक्र कैसे खुलते या संतुलित होते हैं?
योगाभ्यास, प्राणायाम, ध्यान, मंत्र-जप, संस्कार और शुद्ध जीवनशैली से चक्रों की नकारात्मक ऊर्जा पिघलती है और वे संतुलित होते हैं।
3. चक्रों का असंतुलन किन समस्याओं को जन्म दे सकता है?
चक्रों का अवरुद्ध होना भय, चिंता, रचनात्मक अवरोध, वाणी संबंधी समस्या, भावनात्मक असंतुलन, रोग आदि का कारण बन सकता है। इसलिए संतुलन आवश्यक है।
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