युग क्या होते हैं? — समय की वह सच्चाई जिसे दुनिया नहीं समझ पाई
सनातन धर्म समय को सीधी रेखा नहीं मानता, बल्कि चक्र मानता है —
जो चलता रहता है, फिर लौट आता है।
दुनिया कहती है —
समय आगे बढ़ता है।
सनातन कहता है —
समय घूमता है।
इस घूमते समय के चार चरण होते हैं,
इन्हें कहा जाता है — चार युग
सतयुग
त्रेतायुग
द्वापरयुग
कलियुग
हर युग में धर्म की शक्ति घटती जाती है।
सतयुग में —
धर्म चार पैरों पर खड़ा था।
सत्य, करुणा, तप और दान — पूर्ण थे।
त्रेतायुग में —
एक पाँव कम हुआ।
धर्म तीन पैरों पर चला।
द्वापरयुग में —
धर्म आधा रह गया।
सत्य और धर्म डगमगाने लगे।
कलियुग में —
धर्म केवल एक पैर पर खड़ा है।
इसलिए आज —
झूठ बढ़ा है
दिखावा बढ़ा है
लालच बढ़ा है
अहंकार बढ़ा है
धर्म केवल शब्द बन गया है।
एक महायुग में ये चारों युग पूरे होते हैं।
और ऐसे कई महायुग मिलकर —
एक मन्वंतर बनाते हैं।
और कई मन्वंतर मिलकर —
एक दिन ब्रह्मा का होता है।
ब्रह्मा का एक दिन —
4 अरब 32 करोड़ वर्ष के बराबर बताया गया है।
और उतनी ही रात।
मतलब —
सृष्टि बनती और मिटती रहती है।
कलियुग को गाली दी जाती है।
पर सच यह है —
यह युग सबसे बड़ा अवसर है।
क्यों?
क्योंकि सतयुग में ध्यान से भगवान मिलते थे,
त्रेता में यज्ञ से,
द्वापर में पूजा से,
कलियुग में —
केवल नाम से।
जो यहाँ जग गया,
वह कहीं भी पार हो गया।
लेखक / Writer
तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By
सनातन संवाद
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Labels: युग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग, महायुग, मन्वंतर, ब्रह्मा, सनातन धर्म, समय चक्र
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