सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

देवी और देवता — प्रतीक नहीं, चेतना के स्वरूप

देवी और देवता — प्रतीक नहीं, चेतना के स्वरूप

देवी और देवता — प्रतीक नहीं, चेतना के स्वरूप

sanatan

नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।

आज मैं तुम्हें उस रहस्य की कथा बताने आया हूँ जो लोग केवल मूर्तियों और पूजा तक सीमित समझते हैं, पर सनातन में यह चेतना और ऊर्जा का विज्ञान है — देवी और देवता।

सनातन धर्म कहता है कि प्रत्येक देवता सिर्फ व्यक्ति या वस्तु नहीं है, बल्कि वह एक शक्ति और चेतना का स्वरूप है। जैसे —

  • विष्णु — पालन और संरक्षण की शक्ति।
  • शिव — परिवर्तन और ध्यान की ऊर्जा।
  • सरस्वती — ज्ञान और संगीत की चेतना।
  • लक्ष्मी — समृद्धि और सफलता की शक्ति।
  • देवी दुर्गा — अधर्म पर विजय और साहस।

पुराण और वेद बताते हैं कि देवता मनुष्यों के लिए उपाय और संदेश का प्रतीक हैं। मूर्ति केवल ध्यान का साधन हैं, जिसमें भक्त अपनी चेतना और भक्ति को केन्द्रित करता है।

देवी-देवताओं की कथाएँ केवल कथा नहीं, वे जीवन के सिद्धांत और चेतना की ऊर्जा बताती हैं। कृष्ण की लीला केवल खेल नहीं, बल्कि भक्ति, नीति और धर्म का संदेश है। राम का जीवन केवल युद्ध नहीं, बल्कि सत्य, न्याय और करुणा का आदर्श है।

सनातन में कहा गया है — “जो देवता को केवल बाहर देखता है, वह मूर्ति देखता है। जो देवता को भीतर महसूस करता है, वह चेतना को जानता है।”

इसलिए सनातन धर्म में पूजा केवल अनुष्ठान नहीं, यह मन, वाणी और कर्म को दिव्य चेतना से जोड़ने का विज्ञान है। जो इसे समझता है, वह देवी और देवता के माध्यम से अपने भीतर ईश्वर की अनुभूति करता है।

✍🏻 लेखक: तु ना रिं

🌿 सनातन इतिहास ज्ञान श्रृंखला


🙏 Support Us / Donate Us

हम सनातन ज्ञान, धर्म–संस्कृति और आध्यात्मिकता को सरल भाषा में लोगों तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। यदि आपको हमारा कार्य उपयोगी लगता है, तो कृपया सेवा हेतु सहयोग करें। आपका प्रत्येक योगदान हमें और बेहतर कंटेंट बनाने की शक्ति देता है।

Donate Now
UPI ID: ssdd@kotak



टिप्पणियाँ