गुरु — बिना दीपक के अंधकार में चलना क्यों असंभव है
नमस्कार, मैं तु ना रिं, एक सनातनी।
आज मैं तुम्हें उस आधार की बात बताने आया हूँ
जिसके बिना सनातन का कोई भी मार्ग पूर्ण नहीं होता — गुरु।
सनातन धर्म में गुरु कोई पद नहीं,
कोई संस्था नहीं,
कोई व्यवसाय नहीं।
गुरु वह है
जो तुम्हें तुमसे मिलवा दे।
शास्त्र कहते हैं —
गुरु ब्रह्मा है,
गुरु विष्णु है,
गुरु महेश है।
पर इसका अर्थ मूर्ति-पूजा नहीं,
अर्थ यह है कि
गुरु ही निर्माण करता है,
गुरु ही संभालता है,
और गुरु ही अज्ञान का संहार करता है।
ज्ञान किताब से मिल सकता है,
पर बोध गुरु से मिलता है।
किताब बताती है क्या है,
गुरु दिखाता है क्यों और कैसे।
सनातन में गुरु इसलिए आवश्यक है
क्योंकि अहंकार
सबसे बड़ा अंधकार है।
और अहंकार
खुद को कभी गलत नहीं मानता।
गुरु वही है
जो प्रेम से तुम्हारा भ्रम तोड़ दे।
गुरु बाहर भी हो सकता है,
और भीतर भी।
कभी जीवन की चोट गुरु बन जाती है,
कभी मौन,
कभी कोई वाक्य,
कभी कोई व्यक्ति।
पर बिना गुरु के
साधना भटक जाती है,
ज्ञान अहंकार बन जाता है,
और भक्ति अंधविश्वास।
सच्चा गुरु
चमत्कार नहीं दिखाता,
वह तुम्हें सजग करता है।
वह अपने पीछे नहीं,
तुम्हें सत्य के पीछे चलाता है।
सनातन कहता है —
जो गुरु को खोजता है,
वह अभी तैयार नहीं।
और जो तैयार होता है,
उसे गुरु स्वयं खोज लेता है।
गुरु का अर्थ
किसी के चरणों में झुकना नहीं,
गुरु का अर्थ है
अपने भीतर के अज्ञान को झुका देना।
और जिस दिन
तुम्हें अपनी मूर्खता दिखने लगे,
समझ लेना —
गुरु की कृपा शुरू हो गई।
🌿 सनातन इतिहास ज्ञान श्रृंखला
लेखक / Writer : तु ना रिं 🔱
प्रकाशन / Publish By : सनातन संवाद
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